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sneh goswami

Others

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खुशियों का पैगाम

खुशियों का पैगाम

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अक्सर वह कहा करता- "मोबाइल और मेल के जमाने में डाकिया।"

"अब तो वाट्स एप करो, तुरंत संदेश कहां से कहां पहुंच गए। हुंह ! सरकार फ़ालतू की तनख्वाह दे रही है इनको।"

पापा हमेशा समझाते- " हर आदमी अपने आप में महत्वपूर्ण होता है। " 

अब वह प्रतियोगी परीक्षा में शामिल हुआ था। परिणाम घोषित हो गया। इसकी आधिकारिक तौर पर सूचना डाक द्वारा भेजी गई। वह रोज डाकिये का इंतजार करता। साइकिल की आवाज़ सुनाई देते ही वह बाहर दौड़ा। उसके हाथ में अपने अपाइंटमेंट लेटर को देखते ही वह लपक कर उसके गले लग गया।



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