खिलौना
खिलौना
मेरी माँ जीवन भर हीरे के साथ रखना चाहती थी। एक कारण था। यह एक बाल विवाह था। वे हो गए और घर लौट आए। मेरे पिता ने उत्तर के हिंदी भाषी राज्य मैं काम किया, मेरी माँ भाषा नहीं जानती। दादी की
सापेक्ष उनके पास आईं बहुत मीठी-मीठी बातें करते हुए, वे यह कहते हुए उसके पास गए कि वह मुसीबत मैं है और कुछ दिनों मैं ठीक हो जाएगा।और मेरी माँ के हीरे को एक कहानी बोलकर लेकर चले गए।
मेरी माँ कुछ नहीं जानती । यहाँ तक कि मेरे पति, यानी मेरे पिता से भी बिना पूछे, बिना उनके कान मैं हीरे के रोपण मेरी माँ ने मेरी दादी से यह बात कही।
दादी यह कहकर सांत्वना की मैं दूँगी ।मैं सच मुच मेरी माँ को हीरा पहनना चाहता था। परंतु मैं क्या करूं तकदीर का एक खिलौना था मैं ।
