जवानी की चिंता
जवानी की चिंता
'वर्ण्या। कहाँ जा रही हो?' घर से निकलती हुई वर्ण्या को दादी ने पीछे से आवाज दी।
'दादी, डांस क्लास हैं मेरा और ये आप क्यों पूछती हो?' मुस्कुराकर वर्ण्या ने जवाब दिया।
'वो मुझे याद नहीं रहता ना इसलिए' दादी ने वर्ण्या के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा।
'अच्छा? मैं नहीं जानती क्या? मुझे सब पता है कि आप मुझे यह रोज क्यों पूछती हो मगर जो फिक्र आपको मेरे लिए है ना इतनी फिक्र है फिकर मुझे भी मेरी करनी आती है।' हल्की सी मुस्कान लियें वर्ण्या ने जवाब दिया।
'अच्छा इतनी सयानी हो गई हैं मेरी बिटिया?' दादी ने हंसकर कहा।
'हाँ। आप को देखकर होना ही पड़ता है।' वर्ण्या ने कहा।
'चलो ठीक है फिर। और बाकी सब बढ़िया?'
'हां दादी।'
'चलो कोई ना। तुम्हें लेट हो जाएगा तो जाओ डांस क्लास के लिए।' दादी ने निश्चित तौर पर कहा।
'ठीक है दादी जा रहे हैं।' कहकर वर्ण्या अपने डांस क्लास के लिए निकल गई।
जाती हुई वर्ण्या को दादी तब तक देखती रही जब तक वह उनकी आंखों से ओझल ना हो गई।
वाकई अपनी वर्ण्या काफी सयानी हो गई हैं और इतनी समझदार भी कि वो खुद का ख्याल रखना भी जानती हैं। यह सोचते सोचते दादी घर में आकर चौकी पर आराम से बैठ गई। अब माथे से चिंता की लकीरें कम होती दिख रही थी।
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