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Prabodh Govil

Children Stories

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Prabodh Govil

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जंगल चला शहर होने -2

जंगल चला शहर होने -2

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पोपटराज को अपनी उम्र पर भरोसा था। शेर कितना भी खतरनाक या गुस्सैल हो पर कम से कम मिट्ठू पोपटराज की आयु का ख्याल ज़रूर करेगा। पोपटराज ने तो शेर की पिछली तीन पीढ़ियों को अपनी आंखों से देखा था। उसका सम्मान तो सभी करते थे।

आज ही शाम को जब घूम- फिर कर, खा- पीकर शेर अपनी मांद में वापस पहुंचा तो पोपट भी जा पहुंचा।

शेर उसे देख कर खूब खुश हुआ। ख़ूब बातें हुईं।

पोपट मानो आज शेर की क्लास ही लेने आया हो। बोला - ज़माना बदल चुका है सर! अब पुरानी बातें नहीं रहीं।

शेर पहले तो चौंका किंतु फ़िर बूढ़े पोपटराज की बात ध्यान से सुनने लगा।

मिट्ठू कह रहा था - आप बरसों से जंगल के राजा हैं। लेकिन इसका कोई भी फ़ायदा आपने नहीं उठाया। मुझे लगता है अब समय आ गया है कि आप भी शानो- शौकत से रहें। कुछ ठाठ बाट तो आपका होना ही चाहिए।

शेर ने एक बार नज़र घुमा कर अपनी मांद को देखा फ़िर तल्लीन होकर मिट्ठू की बात सुनने लगा। आखिर क्या कहना चाहता है वो, कुछ पता तो चले।

शेर ताड़ गया कि मिट्ठू जो कुछ भी कह रहा है वो शायद शेर के भले के लिए ही है। उसने चेहरे पर कुछ प्रसन्नता दिखाई। 

मिट्ठू पोपटराज को भला और क्या चाहिए था। फ़ौरन शुरू हो गया। बोला - सर आपके लिए एक बड़ी सी महलनुमा मांद होनी चाहिए। आपके पास कुछ भरोसे के जीव रहें जो जंगल की सारी सूचना आपको देते रहें। आपके पास कुछ खज़ाना भी होना चाहिए और होना चाहिए कुछ स्टाफ, जो आपकी हर समय देखभाल करे।

शेर का मन बल्लियों उछलने लगा।

पोपट का साहस बढ़ा। आगे बोला - माना कि आप बहुत ताकतवर हैं पर फिरभी आपके पास अपने कुछ सुरक्षा गार्ड होने ही चाहिएं।

अब शेर कुछ कसमसा कर बोला - कहते तो तुम ठीक हो, पर क्या मेरे साथ रहने के लिए कोई दूसरे पशु पक्षी तैयार होंगे? 

- क्यों नहीं होंगे। जब सबको पता चलेगा कि अब आप हर जिस को मार कर नहीं खाते, बल्कि आपका स्टाफ ही आपके लिए भोजन की व्यवस्था करता है, तो वो सब आपसे मिलने और तरह तरह की फरियादें करने आने लगेंगे। सबके काम करने से आपकी प्रतिष्ठा और भी बढ़ेगी। आपका खज़ाना इस काम में आयेगा कि लोगों का काम हो।

- जैसा तुम ठीक समझो। शेर बोला।

- मैं कल ही आपके लिए कुछ बुद्धिमान जीवों को हाज़िर करता हूं। कहते हुए मिट्ठू ने हाथ जोड़कर प्रस्थान किया।

पोपटराज का काम बन गया। खरगोश और लोमड़ी को लेकर एक दिन शेर के पास पहुंच गया। लोमड़ी को शेर ने मिट्ठू के कहने पर अपनी "केयर टेकर" बना दिया। खरगोश बना राजा जी का निजी सहायक।

शेर ने पोपट से कहा - देखो भाई, ये सब मैंने तुम्हारे कहने से ही किया है। मुझे तो कुछ पता नहीं है कि करना क्या है। तो अब तुम्हें ही सब संभालना होगा। तुम मुझे बताते रहना कि किस तरह सारी व्यवस्था चलाई जाए।

पोपट को और क्या चाहिए था। झटपट बोला - सर, आप मुझे अपना "एडवाइजर" बना दीजिए। 

शेर ने मंजूरी दे दी।

अब सबसे ज़रूरी काम तो ये था कि शेर के लिए रोजाना के भोजन की व्यवस्था की जाए। वरना भूखे होने पर राजा साहब कभी भी किसी पर झपट सकते थे।

पोपट ने शेर से कहा - सबसे पहले आपको ये शपथ लेनी चाहिए कि कल से आप केवल वही खायेंगे जो आपका स्टाफ आपको परोसेगा। उसके अलावा और किसी पर भी ललचाई नज़रों से नहीं देखेंगे।

राजा के कुछ कर्तव्य भी होते हैं, केवल अधिकार नहीं। शेर पोपट की इस बात पर सहमत हो गया।

चलो, लोमड़ी और खरगोश का प्लान भी सफ़ल हुआ।

कल मिलते हैं, कह कर सबने राजा जी से बिदा ली।

अब सबसे ज़रूरी काम ये था कि राजा साहब के पास एक खज़ाना जमा किया जाए। इसके लिए बहुत सारे धन की ज़रूरत थी। 

कहते हैं कि कोई भी राजा तभी सफ़ल होता है जब वो लोकहित के काम करे। उन्नति के काम करे।

और मिट्ठू अच्छी तरह जानता था कि धन कहां है और कैसे आ सकता है।

उसने अपने साथियों से सलाह की और झटपट काम भी शुरू कर दिया।

तमाम चूहों, छिपकलियों और कीट पतंगों को इकट्ठा करके एक मीटिंग हुई। मिट्ठू ने कहा - दुनियां में "धन-दौलत" केवल एक ही जीव के पास है। और वो है आदमी।


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