हम भी...!
हम भी...!


लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
हमें जैसे ही पता चला कि हमारे अभूतपूर्व हीरो अंतरिक्ष में एक दूसरे को सोकल और बेर्कूत (बाज़ और उकाब – हम इन्हीं नामों का इस्तेमाल करेंगे जिससे कि आपको दो रूसी शब्दों का ज्ञान हो जाए! – अनु.) के नाम से पुकारते हैं, तो हमने फ़ौरन फ़ैसला कर लिया कि अब मैं बनूँगा बेर्कूत(उकाब), और मीश्का – सोकल(बाज़). चूँकि हमें भी अंतरिक्षयात्रियों के बारे में पढ़ना ही था, और सोकल और बेर्कूत कितने प्यारे नाम हैं! और, मैंने और मीश्का ने यह भी तय कर लिया कि जब तक हमें अंतरिक्ष स्कूल में प्रवेश मिलेगा, हम दोनों धीरे धीरे अपने आप को फ़ौलाद की तरह मज़बूत बनाते रहेंगे. और जैसे ही हमने ये तय कर लिया, मैं घर चला गया और अपने आप को मज़बूत बनाने में लग गया.
मैं शॉवर के नीचे खड़ा हो गया और पहले गुनगुने पानी का फ़व्वारा छोड़ा, और इसके बाद, इसका उलटा, यानी, ठण्डे पानी वाला फ़व्वारा चला दिया. मैं बड़े आराम से उसे बर्दाश्त करता रहा. तब मैंने सोचा कि जब ये सब इतना बढ़िया चल रहा है, तो, फिर ज़्यादा अच्छी तरह से ही मज़बूत होना चाहिए, और मैंने बर्फीले पानी का फ़व्वारा चालू कर दिया. ओहो-हो! मेरा पेट एकदम सिकुड़ गया, और पूरे बदन पे रोंगटे खड़े हो गए.
तो, इस तरह मैं क़रीब आधे घण्टे या पाँच मिनट खड़ा रहा और अच्छे से फ़ौलाद की तरह मज़बूत हो गया! और फिर, इसके बाद, जब मैं कपड़े पहन रहा था, तो मुझे याद आ गया कि कैसे दादी ने एक लड़के के बारे में कविता पढ़ी थी, जो ठण्ड से नीला पड़ गया था और थरथर काँप रहा था.
खाने के बाद मेरी नाक बहने लगी और मैं दनादन छींकने लगा.
मम्मा ने कहा:
”एस्प्रो ले लो, कल बिल्कुल ठीक हो जाओगे. सो-जाओ! अब आज के लिए बस हो गया!”.
मेरा तो एकदम मूड ख़राब हो गया. मैं बस बिसूरने ही वाला था, मगर तभी खिड़की के नीचे से चीख़ सुनाई दी:
“बे-एर्कूत!... ओ बेर्कूत!...अरे, बेर्कूत रे!...”
मैं खिड़की की ओर भागा, सिर बाहर निकाल कर देखा, और वहाँ था मीश्का!”
मैंने कहा:
“तुझे क्या चाहिए, सोकल?”
और वह बोला:
“चल, ऑर्बिट में निकल!”
इसका मतलब था: कम्पाऊण्ड में. मगर मैंने उससे कहा:
“मम्मा नहीं जाने देगी. मुझे ज़ुकाम हो गया है!”
मम्मा ने टाँग पकड़ कर मुझे खींचा और कहा:
“इतना आगे सिर ना निकाल! गिर जाएगा! ये तू किससे बात कर रहा है?”
मैंने कहा:
“मेरा दोस्त आया है. आसमानी भाई. जुड़वाँ भाई! और तुम डिस्टर्ब कर रही हो!”
मगर मामा ने कड़ी आवाज़ में कहा:
“सिर बाहर मत निकाल!”
मैंने मीश्का से कहा:
“मम्मा मुझे सिर बाहर निकालने की इजाज़त नहीं देती...”
मीश्का ने थोड़ी देर सोचा, और फिर ख़ुश होकर बोला:
“सिर बाहर निकालने की इजाज़त नहीं देती, ठीक ही तो है. ये तेरी ट्रेनिंग होगी बा-ह-र-नि-क-ल-ही-नता की!”
तब मैंने सिर थोड़ा सा बाहर निकाल ही लिया और शांति से उससे बोला:
“ऐह, मेरे अच्छे सोकल, सोकल प्यारे! शायद मुझे चौबीस घण्टे घर में ही रहना पड़े!”
मगर मीश्का ने इस बात को भी अपने ढंग से तोड़-मरोड़ दिया: “ये तो बहुत अच्छी बात हैं! बढ़िया ट्रेनिंग! आँखें बन्द कर और ऐसे लेट जा, जैसे कि तू क्वारेंटीन में हो!”
मैंने कहा:
“शाम को मैं तेरे साथ टेलिफोनिक कॉन्टेक्ट स्थापित करूँगा.”
“ ठीक है,” मीश्का ने कहा, “तू मुझसे स्थापित कर, और मैं – तुझसे.”
और वो चला गया.
मैं पापा के दीवान पर लेट गया और आँखें बन्द कर लीं और चुप रहने की प्रैक्टिस करने लगा. फिर मैं उठा और एक्सरसाईज़ कर ली. फिर इल्युमिनेटर (यहाँ खिड़की से तात्पर्य है – अनु.) से अनजान दुनिया को देखता रहा, और फिर पापा आ गए, और मैंने खाने में सिर्फ प्राकृतिक पदार्थ ही लिए. मेरा मूड बहुत अच्छा था. मैंने अपनी कॉट लाकर बिछा दी.
पापा ने कहा:
”इतनी जल्दी क्यों?”
और मैंने अर्थपूर्ण अंदाज़ में कहा:
”आप जैसा चाहें कीजिए, मगर मैं सोऊँगा.”
मम्मा ने मेरे माथे पर हाथ रखा और कहा:
“बच्चा बीमार हो गया!”
मगर मैंने उससे कुछ नहीं कहा. अगर वे नहीं समझते हैं कि ये सब अंतरिक्ष-यात्री बनने की ट्रेनिंग है, तो मैं ही क्यों समझाऊँ? कोई फ़ायदा नहीं. बाद में ख़ुद ही जान जाएँगे, अख़बारों से, जब उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाएगा, कि उन्होंने मेरे जैसे बेटे का लालन-पालन किया!
जब तक मैं ये सब सोचता रहा, काफ़ी समय गुज़र गया, और मुझे याद आया कि मीश्का से टेलिफोन पर संपर्क स्थापित करना है.
मैं कॉरीडोर में गया और उसका नम्बर घुमाया. मीश्का फ़ौरन फोन के पास आया, मगर न जाने क्यों उसकी आवाज़ बेहद मोटी आ रही थी:
“हुँ-हुँ! बोलिए!”
मैंने कहा:
“सोकल, क्या ये तुम हो?”
और वह बोला:
“क्या-क्या?”
मैंने फिर से कहा:
“सोकल ये तू ही है या नहीं है? ये बेर्कूत बोल रहा है! क्या हाल है?”
वह हँसने लगा, नकियाया और बोला:
“वेरी इंटेलिजेन्ट! तो, बहुत हो गया मज़ाक. सोनेच्का, ये तुम हो ना?”
मैंने कहा:
ये सोनेच्का कहाँ से आ गई, मैं बेर्कूत हूँ! तू क्या, पगला गया है?”
मगर उसने कहा:
“ये कौन है? ये कैसी बातें कर रहा है? गुण्डागर्दी! कौन बोल रहा है?”
मैंने कहा:
“ये कोई नहीं बोल रहा है.”
मैंने रिसीवर लटका दिया. शायद मैंने गलत नम्बर डायल कर दिया था. इतने में पापा ने मुझे बुलाया, और मैं कमरे में वापस आ गया, कपड़े उतार दिए और लेट गया. मैं बस ऊँघने ही लगा था कि अचानक:
”ज़् ज़् ज़् ज़् ज़् ! फोन! पापा उछले और कॉरीडोर में भागे, और, जब तक मैं पैरों से अपने स्लीपर्स ढूँढ रहा था, मैंने उनकी गंभीर आवाज़ सुनी:
“बेर्कूत को? कौन से बेर्कूत को? यहाँ ऐसा कोई नहीं है! ध्यान से नम्बर घुमाईये!”
मैं फ़ौरन समझ गया, कि ये मीश्का है! ये है टेलिफोनिक-कनेक्शन! मैं वैसे ही, सिर्फ कच्छे में, कॉरीडोर की ओर भागा.
“ये मेरे लिए है! मैं हूँ बेर्कूत!”
पापा ने फ़ौरन रिसीवर मुझे दे दिया, और मैं चिल्लाया:
“ये सोकल है? मैं बेर्कूत! सुन रहा हूँ!”
और मीश्का बोला:
“रिपोर्ट दो, कि क्या कर रहे हो!”
मैंने कहा:
“मैं सो रहा हूँ!”
और मीश्का:
“मैं भी! मैं तो बिल्कुल सो ही गया था, मगर एक महत्वपूर्ण बात याद आ गई! बेर्कूत, सुनो! सोने से पहले गाना चाहिए! दोनों को मिलकर! युगल गीत! जिससे कि हमारा अंतरिक्ष-गीत बन जाए!”
मैं सीधे उछल पड़ा:
“शाबाश! सोकल! चल, अपना पसन्दीदा अंतरिक्ष-गीत गाएँ! मेरे साथ-साथ गा!”
और मैं पूरी ताक़त से गाने लगा. मैं अच्छा गाता हूँ, ख़ूब ज़ोर से! मुझसे ज़्यादा ज़ोर से कोई और नहीं गा सकता. ज़ोर से गाने में मैं हमारे कोरस-ग्रुप में अव्वल हूँ. मगर जैसे ही मैंने गाना शुरू किया, फ़ौरन सारे पड़ोसी अपने-अपने दरवाज़ों से बाहर निकलने लगे, वो चिल्ला रहे थे: “ये क्या बेहूदगी है...क्या हो गया...इतनी देर हो गई है...पगला गए हैं...ये कम्युनिटी फ्लैट है...मैंने सोचा कि सुअर को काट रहे हैं...”, मगर पापा ने उनसे कहा:
“ये अंतरिक्षी-जुडवाँ भाई हैं, सोकल और बेर्कूत, सोने से पहले गा रहे हैं!”
तब सब लोग चुप हो गए.
और मैंने और मीश्का ने आख़िर तक गाया:
...दूर के ग्रहों की धूल-भरी पगडंडियों पर
रह जाएँगे पैरों के हमारे निशान!