गुझिया।

गुझिया।

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कुछ बन रहा था रसोई में। किसी बच्चे को वहाँ जाने की इजाजत नहीं थी। हमारे दिमाग में योजना बनाने की जद्दोजहद चल रही थी कि वहाँ तक पहुंचने का कोई न कोई रास्ता निकालना ही होगा।


तभी हम सभी में से एक वीर योद्धा ने यह जिम्मेदारी उठाई। हम ने धीमे स्वर में उसका उत्साहवर्धन किया। वह दबे पांव रसोई में पहुँच चुका था। उसका हाथ धीरे धीरे रसोई गैस पर रखी कढ़ाई की तरफ बढ़ रहा था कि तभी किसी के पैरो की आवाज आई और हमारी योजना को विराम लग गया।


अवसर था रंगोत्सव से पूर्व होने वाली तैयारी का। जिसमें मिष्ठान बनाने का विशेष महत्व होता है, खासकर गुझिया। घरों में इसकी तैयारी सप्ताह भर पहले ही शुरू कर दी जाती थी। मोहल्ले में जिसके घर पर गुझिया बनाने की योजना होती, वहाँ सुबह से ही गुझिया की भरावन सामग्री बननी शुरू हो जाती थी।


उस दिन भी कुछ ऐसा ही माहौल था। घर में गुझिया की भरावन सामग्री बनाने की तैयारी चल रही थी और इसके लिए कच्चे मावे को भूनने की तैयारी शुरू हो चुकी थी। हम सभी दोस्त यह सोचकर कर खुश हो रहे थे कि चलो कच्चा मावा खाने का मौका मिलेगा लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं पाया।


आज जब सभी मिठाइयाँ बाजार से आने लगी हैं तो यह शरारत, यह बालपन कहीं खो सा गया।



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