Rahim Khan

Others

4.5  

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घातू /मोरड़ो

घातू /मोरड़ो

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 कहानी का परिचय - यह कहानी सिंधी साहित्य से ली गई है। " घातू" शब्द का अर्थ - मछी पकड़ने के लिए जाने वाला दल । कहानी का आधार शाह अब्दुल लतीफ भिट्टाई के काव्य - " सुर घातू " से लिया गया है, इसलिए शीर्षक भी वही रखा है । वैसे सिंध के संगीत जगत में यह कहानी "मोरडो़" नाम से प्रचलित है।

कहानी -

 सिंध के साहीली इलाके में एक मछली पकड़ने वाला परिवार रहता था । उसका कारोबार यही था । पिता बुजुर्ग था ,अब सारा दारोमदार अपने बैंटों पे था ।उसके सात बैटे थे । छ पुत्र हृष्ट पुष्ट थे सातवां बौना था । जिसका नाम था "मोरड़ो" । मोरड़ो को उसके बौनेपन के कारण उसके बाकि भाई उसे घर पर ही रखते थे , बाकि छवों भाई हमेशा सुबह होते ही अपना जत्था (घातू) ले कर काम के लिए दरिया में उतर जाते और शाम को घर लौट आते। समय बिताता रहा । मछलियों के लिए वे हमेशा नए नए इलाकों में जाते रहते थे । इन्हीं इलाकों में एक प्रसिद्ध कुंड ( झील) था - कुलाच्ची का कुंड। इस कुंड में मछलियां बहुत होती थी , लेकिन इसमें एक विशाल मगरमच्छ रहता था , जिसके डर से कोई वहां मछली पकड़ने नहीं जाता था । कई लोगों ने बहुत बार इस मगरमच्छ को मारकर कुंड को आजाद कराने की कोशिश की मगर सफलता नहीं मिली इसलिए कोई वहां जाने की रिस्क नहीं लेता था । 

एक दिन मोरड़ो के भाईयों को कहीं मछलियां नहीं मिली होगी ,सोचा खाली वापस कैसे जाए? इसी चक्कर में उन्होंने सोचा की आज कोलाच्ची के कुंड में ही चल कर देखते हैं । उन्होंने रिस्क ले कर अपनी नाव कुंड में उतार दी ।किशमत ने साथ नहीं दिया , उस विशाल मगरमच्छ ने पुरी नाव को ही निगल लिया।  

शाम होते होते घर पर टेंशन बढ़ने लगी, इंतजार लंबा होता गया, घातू (दल) नहीं लौटा। परिवार की चिंता बढ़ गई, समुन्दर के काम में हजार जोख़िम होते हैं ,न जाने क्या हो गया होगा !

अब घर पर सिर्फ मोरड़ो ही था , सारी मर्दानां जिम्मेदारी उसी पर थी । अगले दिन मोरड़ो अपने भाइयों की तलाश में निकल पड़ा । तलाश करते करते जब वह कुलाच्ची के कुंड पे गया तो वहां लोगों ने उन्हें सारा माजरा समझाया कि कैसे उसके भाइयों को मगरमच्छ ने निगल लिया।

मोरड़ो बहुत दुखी हुआ । वह बहुत दिलेर व अक्लमंद भी था ,उसने अपने भाइयों का बदला लेने की ठान ली ।

उसने अपने शरीर को देखते हुए एक तरकीब सोची। फटाफट उसने अपनी साईज का लोहे का एक मजबूत पिंजरा बनाया ,उसके चारों तरफ नुकीली कीलें लगवाई ।अपने दोस्तों को सारी तरकीब समझाई । अपने मनसूबे मुताबिक मोरडो़ दलबल के साथ जा पहुंचा कोलाच्ची के कुंड पर । पिंजरे में मजबूत रस्से बांधे गए,खुद मोरड़ो नुकीले हथियार ले कर पिंजरे में बैठ गया। उसके साथियों ने पिंजरे को रस्सियों से बांध कर कुंड में उतार दिया । मगरमच्छ ने जैसे ही देखा वह पिंजरे पर लपक कर निगल लिया। पिंजरा पीछे रस्सियों से बंधा हुआ था, अंदर मोरडो ने मगरमच्छ पे नुकीले हथियार से वार करना शुरू कर दिया , मगरमच्छ अंदर जोर लगाने लाग लेकिन वह जा नहीं सकता ,तब तक मोरड़ो ने उसके अंदर वार कर के उसे घायल कर दिया ,जैसे ही वह घायल होता गया उसकी ताकत कम होने लगी ,तो उसके साथियों ने उसे घोड़ों से खींच कर बाहर निकाल दिया और सभी उस पर टूट पड़े,उसका पेट चीरकर मोरड़ो को जिंदा व उसके भाइयों की लाशे निकाली गई।

कहानी बहुत साधारण हैं लेकिन सिंधी काव्य में मोरड़ो के रोल को बहुत ही दिलेराना व भाइयों के लिए वफादार पैस किया गया है। सिंधी के कई शायरों ने इसे वीर रस व वैराग्य रस भरा हैं जिसे बहुत से फनकारों ने अपने बेहतरीन सुरों से सजाया है, इसके इसी महत्व को देखते हुए मैंने इसे हिन्दी पाठकों के लिए तैयार किया है ।



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