गधे और उल्लू की कहानी
गधे और उल्लू की कहानी


एक गधा था ,वह जंगल में घूमने गया ।वहाँ घूमते फिरते और घास चरते उसे देर हो गई । धीरे-धीरे अंधेरा हो गया , शाम हो गई,वह जंगल में रास्ता भटक गया। रात हो गई पर वह जंगल से बाहर नहीं निकल सका। उसे डर लगने लगा वह जंगल से बाहर कैसे निकलेगा, रात कैसे बितायेगा। वहीं पेड़ पर एक उल्लू भी रहता था । उसने गधे को परेशान देखा तो उससे बात की और पूछा कि इतने परेशान क्यों हो ?
गधे ने कहा-" मैं जंगल में रास्ता भटक गया हूँ, रात में कुछ दिखाई भी नहीं देता, जंगल से बाहर कैसे निकलूँ, इसी सोच में हूँ। "
उल्लू बोला-" मुझे रास्ता दिखाई देता है, मैं रात में देख सकता हूँ ,मैं तुम्हें रास्ता बता दूँगा, तुम जंगल से बाहर निकल जाओगे।"
उल्लू को तो रात में दिखाई देता है, पर वह दिन में नहीं देख सकता। गधे को दिन में दिखाई देता है पर वह रात में नहीं देख सकता। गधे ने उल्लू की बात मान ली। उसने उल्लू से कहा -"तुम मुझे रास्ता दिखा दो।"
उल्लू ने कहा -"ठीक है, तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठा लो ,मैं तुम्हें रास्ता बताता चलूँगा।"
गधे ने उल्लू को अपनी पीठ पर बैठा लिया ,उल्लू गधे की पीठ पर बैठ गया और रास्ता बताता चला ।इससे धीरे -धीरे गधा जंगल से बाहर हो गया ।तब तक दिन निकल आया ,आसमान में लाली छा गई ,पूर्व दिशा में सूर्य भगवान् उदित हो गये।
गधे ने उल्लू से कहा- "दिन निकल आया, अब मैं देख सकता हूँ, जंगल भी पार हो गया, अब मैं चला जाऊँगा ।"
पर अब उल्लू को गधे की सवारी का मज़ा आ गया था। वह गधे की सवारी करना चाहता था, उसकी पीठ से उतरना नहीं चाहता था।
उल्लू बोला-" चलो, मैं तुमको आगे का भी रास्ता दिखाता चलता हूँ ।"
गधा तो गधा था, वह मान गया। उल्लू दिन में देख नहीं पाता। जबकि गधा दिन में अच्छे से देख पाता है।
उल्लू गधे की पीठ पर सवार रहा और उसको रास्ता बताने लगा। अब उल्लू ग़लत रास्ता बता रहा था क्योंकि उसको दिखाई नहीं देता था। गधे को अच्छे से दिखाई दे रहा था ,फिर भी वह उल्लू की बात मानता रहा और अपनी अक़्ल नहीं लगायी।
उल्लू कभी कहता दायें मुड़ो, कभी कहता बायें मुड़ो। गधा उसकी बात मानकर चलता रहा। उल्लू ने कुछ दूर जाने पर फिर बायें मुड़ने को कहा, बायें एक नदी बह रही थी, जैसे ही गधा बायें मुड़ा, नदी में गिर गया और डूब गया। उल्लू तो उड़कर चला गया।
यह सही है कि रात में गधे की सहायता उल्लू ने की थी क्योंकि उल्लू रात में देख पाता था। पर गधे को तो दिन में दिखाई देता था। उसे दिन में अपनी ऑंखों से देखकर चलना चाहिए था। दूसरे से उतनी ही सहायता लेनी चाहिए, जितनी ज़रूरत हो। यदि अपने पर विश्वास हो तो व्यक्ति धोखा नहीं खाता। दूसरों पर ज़रूरत से ज़्यादा विश्वास ठीक नहीं ।जहॉं अपनी बुद्धि और विवेक काम करता है, वहॉं अपनी ऑंखें खोलकर चलना चाहिये।