Niru Singh

Children Stories

4  

Niru Singh

Children Stories

चूड़ियाँ

चूड़ियाँ

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"देख निनी मेरी नई चुडियाँ, तूने न पहनी चूड़ियाँ।"

निनी की सखी सुनीता ने अपनी हरी हरी चूड़ियाँ खंखाते हुए कहा। 

 "नहीं यह काँच की चूड़ियाँ टूट जाती है और चोट भी लगती है, मुझे न भाँती ये चूड़ियाँ। 

 मुँह बनाते हुए निनी ने जवाब दिया। 

निनी को जन्म देते ही उसकी माँ चल बसी थी और दो साल पहले गाँव में बाढ़ आई थी, तो लोगो की मदद करते करते उसके पिता भी उस बाढ़ में बह गए।

निनी ने जन्म से ही माँ का स्नेह दादी में  पाया था तो वह उन्हें ही अपनी अम्मा जानती थी। अम्मा लोगों के खेतों में काम करती थी। निनी आठ साल की थी पर समझदारी में दादी अम्मा थी।

 अम्मा का भी जी करता था कि वह अपनी पोती को नई चूड़ियाँ दिला सके।

 इसलिए उन्होंने आँचल की गाँठ खोली और दो रुपए निनी को दिए। 

"जा तू भी ले ले अपने लिए चूड़ियाँ "

 "ना!अम्मा यह काँच की नहीं, मैं तो ऐसी चूड़ियाँ पहनूँगी जो टूटे न और ऐसी चूड़ियाँ मेले में नहीं आई"। 

 बड़ी मासूमियत से निनी ने कहा। 

 अगले दिन खेत जाते हुए अम्मा ने बरगद के पेड़ से लटकी हुई पतली वाली बरोह तोड़ लाई, उनसे उन्होंने सुंदर-सुंदर चूड़ियाँ बनाकर निनी को पहनाई। 

 "ले यह ना टूटेंगी !"

 "सही कहाँ अम्मा तुमने यह चूड़ियाँ न टूटेंगी और कितनी अच्छी भी हैं। 

 और वह गाँव में अपनी सभी सखियों को दिखाने चल दी । 

बच्चे अपनी ख़ुशी जब तक दूसरों से बाँट न ले उन्हें चैन कहाँ । 

उसकी चूड़ियाँ देख सभी हँस पड़ी। 

"ये कौन सी चूड़ी पहन ली तूने! ये तो बरोह है,तेरी अम्मा ने तुझे बुद्धू बनाया "

हँसते हुए मिना कहती है। बाकी बच्चे भी हँसते है। 

"नहीं! तुम्हे क्या पता मेरी तो सबसे अच्छी और मजबूत है "। 

अपनी चूडियो को सँवारते हुए निनी ने कहा। 

"चलो चलो खेलते है ये तो यूँ ही बक बक करती है ये भी कोई चूड़ी हुई "। 

सुनीता सबको इसारे से बुलाते हुए कहती है। 

"तुम लोग खेलो मुझे नहीं आना। "

रुआँसे मन से निनी कहती है और वही पेड़ के नीचे बैठ जाती है। 

बाकी सब पकड़म पकड़ाई खेलने में लग जाती है। 

दूर बैठी निनी सोचती है। 

" क्या सच्ची मेरी चूड़ियाँ अच्छी नहीं "। अपनी चीज को कोई बुरा कह दे तो बाल मन टूट सा जाता है। 

अचानक जोरो से चिल्लाने की आवाज आई और निनी का ध्यान अपनी चूड़ियों से भटका देखती है कि सभी सुनीता को घेरे ख़डी है। वह भी भाग के जाती है। 

"क्या हुआ? क्या हुआ?"

सुनीता जमीन पर गिरी पड़ी है और चूड़ियाँ टूट के उसके हाथो में धस गईं है और हाथों से खून निकलरहा था। 

रोते रोते सुनीता कहती है। 

"तूने ठीक कहा था निनी "। 

"देखा न, चलो चलो पहले वैद जी के पास जाते है। "

निनी और बाकी सभी सखियाँ उसे लेके वैद जी के पास जाते हैं । 

वैद जी सुनीता को देख गुस्से से बोले । 

"किसने कहा था? चूड़ियाँ पहन के खेलने को! "। 

सुनीता और जोर से रोने लगती है। 

किसी तरह से मरहम पट्टी कर सुनीता को उसके घर पहुँचा कर निनी आपने घर पहुँचती है और अम्मा को सब बताती है। 

"कैसी है सुनीता? तुझे तो कुछ नहीं हुआ "

अम्मा परेशान हो कर बोलती है। 

"अरे! नहीं अम्मा मुझे कुछ नहीं हुआ, मैंने तो काँच की चूड़ियाँ नहीं पहनी। "

निनी अपनी चूड़ियाँ दिखाते हुए बोलती है। 

अगले दिन सुनीता खेलने नहीं आती है, बाकी सभी अपनी चूड़ियाँ उतार कर आती। सिर्फ निनी के हाथों में ही चूड़ियाँ दिखती है। 

"तेरी चूड़ियाँ सच्ची बहुत अच्छी है कहाँ से ली तूने "। 

मिना निनी की चूड़ियो को छूते हुए कहती है। 

"मेरी अम्मा ने बनाई है"

थोड़ा इतराते हुए निनी कहती है। 

"जानती हो ये न तो टूटेगी, न इसका रंग जायेगा। और पैसे भी न लगे। "

"अच्छा !हमारे लिए भी बनवाँ दो ना अपनी अम्मा से कह के "। 

मिना कहती है। 

"ना !ना!इतनी चूड़ियाँ बनाने में तो मेरी अम्मा के हाथ दुख जायेंगे। तुम सब तो कल बड़ा इतरा रही थी अपनी चूड़ियों पर"। 

अपनी चूड़ियों को सँवारते हुए निनी बोली। 

रात को सोते समय निनी ने अम्मा से सारी बातें बताई, तो अम्मा ने कहा 

"ऐसा नहीं कहते अपनी किसी भी चीज पे इतराना अच्छी बात नहीं , कल सुनीता की बात तुम्हे बुरी लगी थी ना तो तुमने भी मिना का दिल दुखाया। तुमने अच्छा नहीं किया !

मैं कल उनके लिए भी बना दूंगी चूड़ियाँ तुम उन्हें दे आना। "

थोड़ी देर शांत रह कर निनी बोली " हाँ अम्मा फिर हम सब कि एक जैसी चूड़ियाँ हो जाएंगी।"

और निनी अम्मा से लिपट के सो जाती है। 


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