“चाशनी”
“चाशनी”


- एक लघुकथा
तेज़ी से मुड़ती एक बस से डर कर वह पीछे हटा, पर पीछे से आते एक स्कूटर ने उसे फिर आगे होने पे मजबूर कर दिया...
मैं परेशान था कि उस छोटे से, परन्तु भीड़-भाड़ वाले चौराहे के बीचों-बीच खड़ा आख़िर वह कर क्या रहा था... चारों तरफ़ से निकलती, मुड़ती गाड़ियों से घबराकर वह तेज़ी से कभी आगे होता और कभी पीछे हटता, कभी दायें भागता तो कभी बायें! हैरानी कि बात यह थी कि बड़ी ढिठाई से वह हर बार वापस उसी जगह आ खड़ा होता।
आवारा सा लग रहा था शक़्ल-सूरत से। और सेहत मानो प्रतिनिधित्व कर रही हो हि
ंदुस्तान में ग़रीबी-रेखा से नीचे रहने वाली जनता का!
मैंने थोड़ा आगे होकर ध्यान से देखा उस जगह को, जो उसे लगातार आकर्षित कर रही थी - पास की दुकान से जलेबी खाकर किसी ने चाशनी भरा पत्ता वहाँ फेंक दिया था, और वह बेवकूफ़ जैसे अपनी जान को ताक पर रखे, उसकी एक-एक बूँद चट कर जाना चाहता था। तभी मुझे अपनी बस आती दिखी, चौराहा पार कर के उसके हमारे स्टैंड तक पहुँचने के बीच में एक अजीब सी गुर्राहट भरी चीख सुनाई दी। ऑफ़िस पहुँचने की जल्दी थी, मैंने भाग कर बस पकड़ ली।
उत्सुकता से पीछे के शीशे में से बाहर देखा...
उस कुत्ते का ख़ून चाशनी के साथ मिल कर पूरी सड़क पर बह रहा था!
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