Charumati Ramdas

Children Stories

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Charumati Ramdas

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चालाक तरीका

चालाक तरीका

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 लेखक: विक्टर द्रागून्स्की

अनु. : आ. चारुमति रामदास


 “तो,” मम्मा ने कहा, “ज़रा ग़ौर फ़रमाइए! छुट्टी कैसे बीत जाती है? बर्तन, बर्तन, बर्तन, दिन में तीन-तीन बार बर्तन! सुबह कप-प्लेट्स धोओ, और दिन में प्लेटों का पूरा पहाड़. बस, मुसीबत ही मुसीबत!”

 “हाँ,” पापा ने कहा,” वाक़ई में ये बड़ी भयानक बात है! कितने दुख की बात है कि इस बारे में किसीने कुछ सोचा भी नहीं है. ये इंजीनियर लोग क्या करते हैं? हाँ, हाँ...बेचारी औरतें...”

पापा ने गहरी साँस ली और दीवान पर बैठ गए.मम्मा ने देखा कि वो कितने आराम से बैठ गए हैं और बोली:

 “”यहाँ बैठ कर घिनौने तरीक़े से आहें भरने की ज़रूरत नहीं है! इंजीनियरों के ऊपर भी सारा दोष मढ़ने की ज़रूरत नहीं है! मैं तुम दोनों को समय देती हूँ. लंच तक तुम दोनों को कुछ न कुछ सोचना है और मेरा ये नासपीटा बर्तन-धुलाई का काम हल्का करना है! जो नहीं सोचेगा, उसे मैं खाना नहीं दूँगी. बैठा रहे भूखा. डेनिस्का! ये तेरे बारे में भी है. तैयार हो जा कुछ सोचने के लिए!”

मैं फौरन विन्डो-सिल पर बैठ गया और सोचने लगा, कि इस बारे में क्या किया जाए. 

पहली बात तो ये थी कि मैं डर गया था कि मम्मा सचमुच में मुझे खाना नहीं देगी और मैं भूख से मर जाऊँगा; और दूसरी बात: मुझे इस बारे में सोचना बड़ा अच्छा लग रहा था, क्योंकि इंजीनियर्स कुछ कर नहीं पाए थे. और मैं बैठा था, सोच रहा था और कनखियों से पापा की ओर देख लेता था, कि उनका क्या हाल है. मगर पापा ने तो सोचने के बारे में सोचा ही नहीं. उन्होंने दाढ़ी बनाई, फिर साफ कमीज़ पहनी, फिर दस अख़बारों की गड्डी पढ़ ली, और उसके बाद आराम से रेडियो लगा दिया और पिछले हफ़्ते की कुछ ख़बरें सुनने लगे.

तब मैंने और जल्दी सोचना शुरू कर दिया. पहले मैं किसी इलेक्ट्रिक मशीन के बारे में सोचने लगा जो ख़ुद-ब-ख़ुद बर्तन धो ले और उन्हें पोंछ भी ले. इसके लिए मैंने हमारी फ़र्श धोने वाली मशीन और पापा के इलेक्ट्रिक शेवर ‘खारकोव’ के स्क्रू खोल दिए. मगर मैं उसमें तौलिया अटकाने के लिए कोई जगह नहीं ढूँढ पाया.

पता चला कि मशीन चालू करने पर शेवर तौलिए के हज़ारों टुकड़े कर देगा. तब मैंने सारी चीज़ें फिर से जोड़ दीं और कुछ और सोचने लगा. और दो घण्टे बाद मुझे याद आया कि मैंने अख़बार में कन्वेयर के बारे में पढ़ा था, और इसके कारण मैंने अचानक बड़ी मज़ेदार चीज़ सोची. और जब लंच का टाइम हो गया और मम्मा ने मेज़ पर सब कुछ सजा दिया, और हम सब बैठ गए, तो मैंने कहा:

“तो, पापा? तुमने सोच लिया?”

“किस बारे में?” पापा ने कहा.

“वही, बर्तन धोने के बारे में,” मैंने कहा. “वर्ना मम्मा हम दोनों का खाना बन्द कर देगी.”

“वो तो उसने मज़ाक किया था,” पापा ने कहा. “वो अपने ख़ुद के बेटे को और बेहद प्यारे पति को कैसे नहीं खिलाएगी?”

और वो ज़ोर से हँसने लगे.

मगर मम्मा ने कहा:

“मैंने कोई मज़ाक-वज़ाक नहीं किया है, अभी पता चलेगा! शर्म कैसे नहीं आती! मैं सौंवी बार कह रही हूँ – बर्तन धोते-धोते मेरा दम निकल जाता है! ये ज़रा भी कॉम्रेडों जैसा बर्ताव नहीं है : ख़ुद खिड़की की सिल पर बैठे रहना, और दाढ़ी बनाते रहना, और रेडियो सुनना, जब कि मैं अधमरी हो रही होती हूँ, बिना रुके आप लोगों के कप और प्लेटें धोती रहती हूँ.”

“ठीक है,” पापा ने कहा, कोई तरक़ीब सोचते हैं! तब तक खाना तो खा लें! ओह, छोटी-छोटी बातों के पीछे ये नाटक!”

“आह, छोटी-छोटी बातों के पीछे?” मम्मा ने कहा और वह एकदम भड़क गई. “क्या कहने, बहुत ख़ूब! और अगर मैं सचमुच ही खाना न दूँ तो फिर तुम लोग ऐसी बकवास नहीं करोगे!”

और उसने ऊँगलियों से अपनी कनपटियाँ दबाईं और मेज़ से उठ गई. और मेज़ के पास खड़े-खड़े बड़ी देर तक पापा को देखती रही. और पापा ने सीने पर हाथ रख लिए और कुर्सी पर झूलने लगे और वो भी मम्मा की ओर देखते रहे. और वो दोनों ख़ामोश थे. और कोई खाना-वाना भी नहीं था. मगर मुझे तो ज़ोर की भूख लगी थी. मैंने कहा:

“मम्मा! ये, बस, अकेले पापा ने ही तो कुछ नहीं सोचा है. मगर मैंने तो सोच लिया है! सब ठीक है, तुम परेशान न होना. चलो, खाना खाएँगे.”

मम्मा ने कहा:

“तूने आख़िर क्या सोच लिया?”

मैंने कहा:

“मम्मा, मैंने एक चालाक तरीक़ा सोचा है!”

उसने कहा:

“चल, चल, बता दे...”

मैंने पूछा:

“तुम हर बार खाने के बाद खाने के कितने सेट्स धोती हो? हाँ, मम्मा?”

उसने जवाब दिया:

“तीन.”

“तब कहो ‘हुर्रे’,” मैंने कहा, “अब से तुम बस एक ही सेट धोया करोगी! मैंने एक चालाक तरीका सोच लिया है!”

“चल, बता भी दे,” पापा ने कहा.

“चलो, पहले खाना खा लेते हैं,” मैंने कहा. “खाना खाते-खाते मैं बताऊँगा, मुझे तो बड़े ज़ोर की भूख लगी है.”

“चलो, ठीक है,” मम्मा ने गहरी साँस ली, “चलो, खा लेते हैं.”

और हम खाना खाने लगे.

“तो?” पापा ने कहा.

“बड़ा आसान है,” मैंने कहा. “तुम बस सुनती रहना, मम्मा, देख लेना सब कुछ कितना बढ़िया हो जाएगा! देखो: जैसे, ये खाना तैयार है. तुम बस एक ही सेट मेज़ पर रखती हो. रखती हो, तुम, याने कि, बस एक ही सेट, गहरी प्लेट में सूप डालती हो, मेज़ के पास बैठती हो, सूप खाने लगती हो और पापा से कहती हो, “खाना तैयार है!”

पापा, बेशक, हाथ धोने जाते हैं, और, जब तक वो हाथ धोते हैं, तुम, मम्मा, अपना सूप ख़तम कर चुकी होती हो, और पापा को अपनी ही प्लेट में नया सूप डालकर देती हो.”

और ये, पापा कमरे में लौटते हैं और फ़ौरन मुझसे कहते हैं:

 “डेनिस्का, खाना तैयार है! जा, हाथ धो ले!”

मैं जाता हूँ. तुम, इस समय उथली प्लेट से कटलेट्स खा रही होती हो. और पापा सूप खाते रहते हैं. और मैं हाथ धोता रहता हूँ. और जब मैं उन्हें धो लेता हूँ, मैं आप लोगों के पास आता हूँ, और यहाँ, पापा ने सूप ख़त्म कर लिया है, और तुमने कटलेट्स खा लिए हैं. और जब मैं अन्दर आया तो पापा ने अपनी ख़ाली प्लेट में नया सूप डाला, तुमने पापा को अपनी ख़ाली प्लेट में कटलेट्स दिए. मैं सूप खा रहा हूँ, पापा कटलेट्स खा रहे हैं, और तुम आराम से ग्लास में फलों का स्ट्यू पी रही हो.

जब पापा कटलेट्स ख़तम कर चुके होते हैं, तभी मैं भी अपना सूप ख़त्म कर चुका हूँ. तब वो अपनी उथली प्लेट में कटलेट्स डालते हैं, और इस समय तुम स्ट्यू ख़त्म कर चुकती हो और पापा को उसी गिलास में स्ट्यू डाल कर देती हो. मैं सूप वाली ख़ाली प्लेट सरका देता हूँ, कटलेट्स वाली प्लेट लेता हूँ, पापा स्ट्यू पीने लगते हैं, और तुम, शायद, खाना ख़त्म कर चुकी हो, इसलिए तुम सूप वाली गहरी प्लेट उठाती हो और उसे धोने के लिए किचन में जाती हो!

जब तक तुम वो प्लेट धोती हो, मैं कटलेट्स खा चुका होता हूँ, और पापा – स्ट्यू. अब वो मेरे लिए गिलास में स्ट्यू डालते हैं और उथली वाली प्लेट तुम्हारे पास ले जाते हैं, मैं एक ही घूँट में स्ट्यू गटक जाता हूँ और ख़ुद वो खाली गिलास किचन में ले जाता हूँ! सब कुछ कितना आसान है! और तुम्हें तीन सेट्स के बदले बस एक ही सेट धोना पड़ता है. हुर्रे!”

 “हुर्रे!” मम्मा ने कहा. “हुर्रे तो हुर्रे, मगर ये बहुत अनहाइजीनिक है!”

 “बकवास!” मैंने कहा, “आख़िर सब अपने ही तो हैं. मुझे, मिसाल के तौर पर, पापा के बाद खाने में कोई ऐतराज़ नहीं है. मैं उनसे प्यार करता हूँ. तो, फिर बात क्या है...मैं तुमसे भी प्यार करता हूँ.”

”वाक़ई में , बड़ा चालाक तरीका है,” पापा ने कहा. “मगर. चाहे कुछ भी कहो, तीन किश्तों में खाने के मुक़ाबले में, सबके एक साथ बैठकर खाने का मज़ा ही कुछ और है.”

“हाँ,” मैंने कहा, “मगर, मम्मा के लिए ये आसान है! बर्तन तो एक तिहाई रह जाते हैं ना.”

“जानते हो,” पापा ने सोच में डूबे-डूबे कहा, “मुझे लगता है कि मैंने भी एक तरीका सोच लिया है. हाँ ये सच है कि वो इतना चालाक नहीं है, मगर फिर भी...”

“बताओ,” मैंने कहा.

पापा उठे, आस्तीनें चढ़ाईं और मेज़ से सारे बर्तन इकट्ठे कर लिए.

“मेरे पीछे आ जा,” उन्होंने कहा, “मैं तुझे अपना ना-चालाक तरीका दिखाता हूँ. वो ये है कि अब से हम और तुम मिलकर सारे बर्तन साफ़ किया करेंगे!”

और वो चल पड़े.

मैं उनके पीछे भागा. और हमने सारे बर्तन धो डाले. हाँ, बस केवल दो सेट्स. क्योंकि तीसरा तो मैंने तोड़ दिया. ये, बस, मेरे हाथ से हो गया, मैं पूरे समय यही सोच रहा था कि पापा ने कितना सीधा-सादा तरीका सोचा है.

और मेरे दिमाग़ में ये क्यों नहीं आया?


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