बरसात
बरसात
राज़ को आज़ फिर विद्यालय जाने में देर हो गई थी। मां कितनी देर से उठाते उठाते थक चुकीं थीं। तब मां ने डाँटते हुए उसे जगाया ,पर राज़ ने मना कर दिया कि देर से पहुँचने पर शिक्षक भी डाँटेंगे और सज़ा भी मिलेगी तो आज़ वो विद्यालय नहीं जायेगा।
मां ने भी उसे सबक सिखाने की ठान ली थी और विद्यालय भेजने की जिद पकड़ ली। राज़ को मन मार कर विद्यालय जाना पड़ा। उफ़ हो! अब तक तो बस भी जा चुकी होगी मन ही मन उसने सोचा पर माँ के क्रोध को देखते हुए उसने कुछ न बोलना ही बेहतर समझा और चुपचाप बस्ता उठाकर चल पड़ा।
कुछ देर सड़क के किनारे खड़ा रहकर आॕटो का इंतजार करने लगा, विद्यालय ज्यादा दूर नहीं था पर फिर भी पैदल चलना उसे गवारा न था काफ़ी सुख सुविधाओं में जो पला था। काफ़ी देर इंतजार करने के बाद भी जब कोई आॕटो , रिक्शा भी न मिला तो मन मानकर धीरे धीरे पैदल ही चल पड़ा।
अभी कुछ ही दूर चला था कि बूँदें बरसने लगीं और सुबह जो घटना क्रम घटा था वो छाता लाना भी भूल गया था। खुद पर ही उसे गुस्सा आया कि क्यों वो समय पर नहीं उठा। बरसात में गीला होना उसे ज़रा भी पसंद न था पर अब क्या कर सकता था। तभी उसे अपने विद्यालय का ही एक लड़का बंद छाता लेकर जाता दिखाई दिया। उसने भी राज़ को देख लिया था वो खुद ही उसकी ओर आया और पूछ बैठा , आज़ इतनी देर से विद्यालय जा रहे हो वो भी पैदल।राज़ अपनी ग़लती उसे बताना नहीं चाहता था,पर अभी उसकी मदद जो चाहिए थी (छाता ) राज़ ने भी उससे पूछा कि तुम भी विद्यालय नहीं गये अब तक, उसने कहा (अविनाश) कि आज़ पिता की मदद के लिए रुक गया था। उसके पिता किसान हैं और बरसात में उसे अपने पिता की सहायता करनी पड़ती है और बारिश में भीगना उसे पसंद है मिट्टी की भीनी खुशबू उसे बहुत अच्छी लगती है।वो दोनों बातें करते हुए पैदल चल रहे थे और अविनाश ने अपना छाता राज़ को दे दिया था। राज़ ने महसूस किया कि अविनाश कितनी मेहनत करता है और बरसात का पूरा आँनद उठा कर सहज उसे स्वीकार करता है।आज़ उसे लगा कि हर मौसम का अपना महत्व है हमें ख़ुशी से हर मौसम का आंनद उठाते हुए जीना चाहिए और बस राज़ ने छाता अविनाश को दे दिया और बरसात में भीगने लगा।
ये बरसती रिमझिम बूंदें आज उसे बेहद प्यारी लग रहीं थीं।