Prafulla Kumar Tripathi

Children Stories

5.0  

Prafulla Kumar Tripathi

Children Stories

बिन फेरे ... !

बिन फेरे ... !

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200


यह जो न्यू इंडिया का आज जोरदार ढंग से नारा लग रहा है ना , उसके पीछे ओल्ड इंडिया की ढेर सारी अच्छी- बुरी बातें भी ज़िम्मेदार हैं ।बहुत पीछे के पन्नों को ज़रा पलट कर देखें तो उसमें आपको ओल्ड इंडिया की वे बातें याद आयेंगीं जिसमें औरतों को पर्दे के पीछे सिर्फ घर की चहारदीवारी में सिमट कर रहने का प्रचलन था । घर की लडकियां उतनी ही पढ़ें जिससे वे रामायण आदि का वाचन कर लिया करें । वे रजस्वला हुई नहीं और उनके लिए वर ढूँढना शुरू हो जाया करता था । इसीलिए बालिका वधुओं की संख्या ज्यादा हुआ करती थी । बेमेल विवाह हुआ करते थे और पुरुषों को इधर - उधर मुंह मारते रहने की खुली छूट मिला करती थी । अक्सर घर के मर्द अगर कमाने के लिए कहीं दूर चले जाते थे तो उनके दो - दो परिवार फलने - फूलने लगते थे ।अगर उनकी इतनी बड़ी चोरी पकड़ी भी जाती तो बहु विवाह कोई जुर्म नहीं माना जाता था ।हो सकता है कुछ लोग मेरी बात से इत्तेफाक ना रखें लेकिन यह भी सच है की कुछ क्रूर शासकों ने भारतीय समाज को इतना डरा दिया था की वे लड़कियों को एक कीमती जेवर समझ कर जल्दी से जल्दी उसे उसके ससुराल के हवाले करके निश्चिंत हो जाना चाहते थे । उसी दौर में हमारी कहानी के कुछ पात्र दोहरी ज़िन्दगी के स्वीट एंड साल्ट अनुभव से गुज़र रहे थे ।अप उनसे मिलना चाहेंगे क्या ?


बाबुल दादा बहुत ही पेशोपेश में थे ।वह किस किस को क्या क्या सलाह देते फिरें ! मानता कोई नहीं है ,करता अपनी मनमानी है और जब काम बिगड़ जाता है तो आकर फिर से रोने गिड़गिड़ाने लगता है ।कहता है "भूल हो गई दादा ! "

कोलकता के उस मोहल्ले के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे और अनुभवी माने जाते थे बाबुल दादा । मुगलों के ज़माने के ग्रेजुएट थे और रेलवे की नौकरी करके अभी अभी रिटायर हुए थे ।उनके संगी साथी उन्हें अपना परम हितैषी मानकर जब भी कोई मामला फंसता तो भागे भागे सलाह लेने आते थे ।चाय मुफ्त की पीते और सलाह भी मुफ्त की पा जाते ।अब उन पर कोई बंधन थोड़े ना हुआ करता कि वे सलाह पर अमल करें या ना करें !लेकिन जब बाबुल दादा को यह बात पता चलती की सिर्फ शगल के लिए उनकी सलाह बन्दे ने लिया था तो वे उखड़ जाते थे ।

"शाला , मुझको बुरबक समोझता है ..मैं तो अपना टाइम खोरच करके उसको सलाह दिया और उसने अपने मन की कर ली ।अब भोगे ! " वे बुदबुदा रहे थे ।

उनके सामने पेशे से एक टीचर रह चुके राजकिशोर खड़े थे और दोनों हाथ जोड़े कुछ निवेदन कर रहे थे-

" दादा , मैं बर्बाद हो जाउंगा ।मेरी एक छोटी सी गलती से अब मुझे हर तरफ से निराशा ही नज़र आ रही है । मेरी पेंशन..।" उनकी बात पूरी होती कि बाबुल दादा ने उन्हें बैठने को कहा ।

'हाँ , तो अब बताओ राज किशोर ! क्या परेशानी है भाई ? "

" वो..वो.. जो मैंने यहाँ आकर दूसरी शादी कर ली थी और उससे एक बच्चा भी हो गया था ।मैंने सोचा था कि अब...... अब मैं अपने गाँव- गिरांव कभी भी नहीं जाउंगा और अपने जीवन काल में अपने पेंशन के सहारे यहाँ की घर गृहस्थी चल जायेगी लेकिन जाने कहाँ से गाँव तक यह खबर चली गई कि अब राजकिशोर आने वाले नहीं हैं और लोग बाग़ हमारी पहली पत्नी को उकसा रहे हैं कि वह मेरी पेंशन पर अपना भी दावा ठोंक दे ! "

पहले तो बाबुल दादा हो हो करके हँसे और फिर कुछ सोचने लगे ।थोड़ी देर बाद बोले -

"तुम शाला क्या सोमाझता था कि यह जो तुम डबल गेम खेल रहे हो उसका खुलासा नहीं होगा क्या ?तुम लोग शाला पूरबिहा लोगों की यही दिक्कत है कि एक तो गाँव गिरांव की घरवाली और दूसरी काम करने वाली जगर की मजे देने वाली बीबियाँ बना लेते हो ।बचपन में शादी होती है और जब जवानी आती है तो पिछली बीबी पुरानी लगने लगती है ।अरे भाई कुछ तो भगवान से भी डरा करो ! " बाबुल दादा ने कहा ।

राज किशोर चुप्पी साधे अपने किये पर पछता रहे थे और बाबुल दादा इस परेशानी की कोई काट खोज रहे थे ।

अन्दर से नौकर चाय लाकर रख गया था ।चाय की चुस्कियों के साथ बाबुल दादा ने एक उपाय बताया ।

"तुम ऐसा क्यों नहीं कोरते हो कि गाँव की पंचायत बुलाकर गाँव की प्रापर्टी गाँव वाली और उसके बच्चों को दे दो और उनसे नो ओब्जेक्शन ले लो !उनको किसी तरह राजी कर लो कि वे जैसे इतने साल चुप रहे हैं अब आगे भी चुप रहें ।अगर कहीं उन सबों ने लिखा पढी शुरू कर दी तो तुम्हारी पेंशन भी रुक सकती है । " बाबुल दादा अपनी राय रख चुके थे ।

राजकिशोर को पहली दृष्टि में तो यह सलाह अच्छी लगी लेकिन जाने क्यों उनको इस बात का डर लग रहा था कि अगर गाँव वाले नहीं माने तो क्या होगा ?उन्होंने दादा को धन्यवाद दिया और चले गए ।

राज किशोर की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वे इस मसले को सुलझाने गाँव जाएँ !उनको अपने बड़े भाई ही याद आ आरहे थे जो गाँव के दबंग थे और जिनकी बात कोई टाल नहीं पाता था ।उन्होंने उनसे सम्पर्क साधना चाहा लेकिन फोन लग नहीं सका ।गाँव के ही किसी और परिचित को फोन करके कुशल क्षेम पूछने के बाद बड़े भाई के बारे में पूछा तो पता चला कि वे आजकल ब्लाक प्रमुख का इलेक्शन लड़ रहे हैं और बहुत ही बिजी हैं ।राजकिशोर ने अपनी गाँव जाने की प्लानिंग फिलहाल टाल दी और यह सोचा कि जिसके बल पर वे पंचायत बुलाते जब वह ही बिजी हैं तो जाने से क्या फायदा ।

समय आगे बढ़ता जा रहा था ।बाबुल दादा का दरबार ऐसे लोगों से भरा ही रहता था ।बुजुर्ग , हमउम्र लोगों की मदद करके बाबुल दादा को बहुत खुशी होती थी ।अभी कल ही तो शंभूनाथ भागा भागा आया था ।उसकी भी वही राम कहानी थी ।मूंछ उगते ही तो शादी हो गई थी , काली कलूटी बीबी थी इसलिए उनको पसंद नहीं थी ।अपने तो था ही महा फ्राडियर । कभी इम्पोर्ट का बिजनेस करते कभी एक्सपोर्ट का ।कभी भी वह अपना धंधे का सच नहीं खोलता था । उसको अपने शरीर की भूख शांत करने के लिए जब तक कोई विकल्प नहीं मिला तब तक तो पहली बीबी को सर - आँखों पर बिठाए रखे और जैसे ही एक शहरी अधेड़ महिला ने लाइन दे दिया कि उसके हो लिए ..हाँ हाँ वही बिन फेरे,हम तेरे इस्टाइल में ! अब फंसे हैं दो दो नांव की सवारी करके ।

उधर यह पता चलते ही की बड़े भाई साहब ब्लाक प्रमुखी का इलेक्शन जीत गए राजकिशोर का आत्म विश्वास और भी बढ़ गया ।झट से अपने गाँव जाने की तैयारी करनी उन्होंने शुरू कर दी ।इधर जब से दूसरी बीबी ने यह सुना की वे गाँव जाने वाले हैं उन पर दबाब बनाने लगी थी की अपने साथ वह उसको भी ले चलें ।भला किस मुंह से और किस परिचय से राजकिशोर उसे गाँव ले जाते ?

अगली सुबह उन्हें ट्रेन पकड़नी थी । वे इन सभी दबाबों से मुक्त होकर ही घर जाना चाहते थे । लेकिन यह क्या ?.....भगवान् की मर्जी तो मानो कुछ और ही थी । रात में अचानक उन्हें दिल का इतना तेज़ दरद उठा की उनको प्राथमिक उपचार भी नहीं मिल सका और वे परदेश में ही प्राण त्याग दिए ।


उस दौर मे ऐसे एक नहीं अनेक कारुणिक प्रसंग हुआ करते थे जिसमें राज किशोर बाबू और शम्भू नाथ जैसे लोग अपनी वासना और मनमानेपन से एक नहीं दो चार जिंदगियां दांव पर लगा दिया करते थे ।पुरुष प्रधान समाज की ये दीवार गिरनी ही थी....... ..आखिर अब जाकर गिर सकी है ।घर में बंद औरतों को पंख मिले हैं और वे अब ऊंची उंची उड़ान भर रही हैं । हाँ , बाबुल दादा के पास भी अब फरियादियों का जमावड़ा कम होने लगा है जिससे वे अपने जीवन के शेष बचे खुचे दिन अब भगवान् को याद करने में बिताने के लिए स्वतंत्र हैं ।



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