Anooshika Shrinidhi

Others

4.8  

Anooshika Shrinidhi

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बदनसीबी का दंश

बदनसीबी का दंश

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“सोमू !!! सोमू !!! कहां हो ??” आज ही 4 दिनों की छुट्टी ले कर भैया। भाभी और सोमू के साथ होली मनाने घर आया हूँ .. लेकिन घर में तो होली की कोई रौनक ही नहीं दिख रही है .चारो ओर अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है।  

अभी तक इतना पुकारने पर तो मेरा प्यारा सा १० साल का भतीजा दौड़ता हुआ चाचा - चाचा कहते हुए मुझसे लिपट गया होता. .. हम दोनों एक दुसरे के बेस्ट फ्रेंड  जो हैं ..फौजियों को तो जल्दी किसी पर्व त्यौहार की छुट्टी नसीब नहीं होती ..इतने सालों से ख्वाहिश थी  कभी होली सोमू के साथ खेलूं .. इस इंतज़ार में अब वो १० साल का हो गया।


अंदर भाभी बेहोश पड़ी थी .. कुछ आस-पड़ोस की औरतें उन्हें होश में लाने की कोशिश कर रही थीं . भाभी अचानक होश में आईं. सोमू !! सोमू !! चीत्कारते हुए फिर से बेहोश हो गईं।


कुछ समझ मेंनहीं आ रहा था .. पूछने पर पता चला सोमू इस दुनिया में नहीं है ..आज सुबह ही कार एक्सीडेंट में वो हमे हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया .. सुन कर लगा जैसे पूरी दुनिया घूम रही हो।धड़ाम से मैं जमीं पर बैठ गया कुछ भी सूझ नहीं रहा था .. भगवान इतना घटिया मजाक कैसे कर सकता है ??? मैं तो होली का इतना सारा सामान ले कर आया था सोमू के साथ खेलने के लिए ..किसी तरह गिरता पड़ता भागता हुआ श्मशान घाट पंहुचा सोचा आखिरी बार सोमू का मासूम सा चेहरा देख लूँ . लेकिन किस्मत से मुझे ये भी मय्यसर नहीं हुआ। मेरे पहुँचने के पहले ही चिता लपटों के हवाले हो चुकी थी होलिका की जगह।


     

 उन आग की लपटों में सोमू के साथ साथ और भी कुछ पुरानी यादें सामने सुलग रही थीं। जिन लोगों को... जिन र्रिश्तो को... मैंने अपनी ज़िन्दगी में खुद से ज्यादा अहमियत दी... मेरी किस्मत ने उन्हें हाथ से फिसलते रेत की तरह जिंदगी से कुछ ऐसे गायब किया कि मैं उनके नामो निशान तक नहीं पा सका। मेरी फूटी किस्मत की सजा इस मासूम को देने की क्या जरुरत थी।


कुछ ऐसा ही मंजर था 17 साल पहले...जब मैं अपने पहले साल की सारी कमाइ ले कर माँ के आंचल में डालने आया था और माँ हमे छोड़ कर जा चुकी थी . और मुझे इसी तरह चिता की लपटों में माँ को महसूस करना पड़ा था .. अंतिम दर्शन के काबिल भी मुझेनहीं समझा गया था ।


धीरे -धीरे सुबह होने वाली है .. आग भी ठंडी हो चुकी है . घर वापस जाने का मननहीं कर रहा .खुद को बहुत कोस रहा हूँ .. लग रहा था जैसे मेरी किस्मत की वजह से उसे इस दुनिया से जाना पडा .इससे अच्छा होता की मैं ड्यूटी ही कर रहा होता ।वो बच्चा कम से कम मेरी बदकिस्मती का दंश तो नहीं झेल रहा होता ... वो कल होली के लिए ख़ुशी ख़ुशी तैयारी में जुटा रहता .मैं भी फोन पर उसके साथ होली मना लेता हमेशा की तरह । दिमाग में न जाने कितने ऐसे ही ख्याल आ रहा थे । 

एक बचपन के दोस्त ने गम भुलाने के लिए ये कहते हुए शराब पिला दी की “तू सब कुछ भूल जा..इतना सोचेगा तो पागल हो जायेगा ..क्या इतना आसान होता है ऐसी बातो... को ऐसे लोगों को ... भुला देना जो दिल की गहराइयों तक बसे हों।



 नशे ने तो एक और जख्म हरा कर दिया .. एक चेहरा याद आ रहा था .. जिसे मैं 15 सालों से भूलने कोशिश कर रहा था .. जिसका दिया रुमाल आज भी मेरे पास है जिस पर उसने जब पहली बार कढाई करना सिखा था तो मेरा नाम उकेरा था . ..जिसे मैंने हमेशा खुश देखने की ख्वाहिश रखी... पर जिसने किसी फौजी की हो कर ताउम्र उसके छुट्टियों में आने का इंतज़ार करने से बेहतर किसी ऐसे की हो जाना समझा जो हमेशा उसके साथ रहे ..वैसे जो किया उसने अच्छा ही किया। 

अभी तो अपने बिजनेस मैन पति और बच्चों के साथ कहीं खुशहाल ज़िन्दगी बिता रही होगी ।एक बार उसे देखने का दिल कर रहा है .वो अपने परिवार के साथ खुश है यानहीं .. ये जानना चाहता हूँ । पता नहीं मेरा जाना सही होगा या नहीं .. आस पास से उसका पता तो मिल गया.. शाम तक उसे भुलाने के लिए दो बोतल और पी ली .. लेकिन दिल में दर्द सा हो रहा था। बस एक बार उसे जिंदा सही सलामत देखने का नशा चढ़ गया था।



   आखिर में अपने दिल के हाथो मजबूर हो शाम की ट्रेन पकड़ी .....


  आधी रात में नींद खुली। देखा ट्रेन कहींरुकी है .. पास के पैसेंजर से पूछा “भाई ये कहाँ रुकी है ??” 

 इसका जवाब तो उसके पास भी नहीं था . कोई छोटा सा स्टेशन था जंगल के बीचों बीच ।उसने ये जरुर बताया “ यहाँ तो ट्रेन को रुकना नहीं चाहिए .. रात में जंगली जानवर आते है इधर और ये ट्रेन का स्टॉपेज भी नहीं है..” आधे घंटे से ऊपर होने जा रहा था ।मुझे गुस्सा आ रहा था । उसने मुझे और चढ़ा दिया “आप तो फौजी हो .. जाओ पता कर के आओ यह क्यों रोके हुए है ??”


अब इसे मेरे नशे का असर कहिये या मेरा दुस्साहस मैं उतर गया अँधेरे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर को खरी खोटी सुनाने। दूर - दूर तक न आदमी न आदम जात.. एक कुत्ता भी नज़र नहीं आ रहा था .. लगता है जंगली जानवर के डर से स्टेशन मास्टर भी यहाँ रात मेंनहीं रुकता। मैं वापस लौट रहा था कि सामने ट्रेन छूटते देख मेरा सारा नशा काफूर .. सारी ताकत लगा कर दौड़ना शुरू किया । आखिरी डिब्बे की खिड़की का ग्रिल किसी तरह हाथ आया .सारी खिड़कियाँ डर से लोगों ने बंद की हुयी थी . खिड़की का शटर खटखटाया पर अंदर शायद सब सो रहे थे। शटर थोड़ा ढीला था किसी तरह ३-४ उंगलिया घुसाई .. अंदर बैठे लोग अचानक शटर से ऊँगली देख कर डर गये उन्हें लगा की जंगल से कोई भूत अंदर आना चाह रहा है।

उनलोगों ने शटर को जोर से दबाना शुरू किया .. मैं अपना पूरा हाथ घुसाना चाह रहा था .. पर अब उंगलिया जवाब देने लगी .. दर्द से हाथ बाहर कर लिया .. ट्रेन अब रफ़्तार पकड़ने लगी थी .. और हवा के तेज़ ठन्डे झोंके किसी भी समय मुझे पटरी पर फेंक सकते थे। अब बचने की उम्मीद भी ख़त्म सी लग रही है .. आखिरी प्रयास में पूरी ताकत झोंक के अपने हाथ को अन्दर घुसेड़ दिया .लोग किसी इन्सान का हाथ देख हडबडा गये .खिड़की खोली .अब मेरी जान में जान आई । मेरी किस्मत से ये आपातकालीन खिड़की थी । उनलोगों ने किसी तरह मुझे अन्दर खींच लिया।


सुबह ट्रेन पहुच चुकी थी .. बड़ी मुश्किल से उसका घर मिला . बाहर सोमू जितना ही बड़ा उसका बेटा होली खेल रहा था .. देख के  लगा सोमू को देख लिया .. जा कर गले से लगा लिया .. बच्चे को समझ में नहीं आया की चक्कर क्या है ।..मैं उसे क्या कहता .. “तुम्हारे नानी घर से आया हूँ बेटा .. "मम्मी कहाँ है ??”


उसने रसोई की खिड़की की तरफ इशारा किया और अपने दोस्तों के साथ खेलने में लग गया ..खिड़की से झाँका ..सामने किचन में उसे देख कर आँखों पर यकीं नहीं हो रहा है .. चेहरा तो वही है .. जिस पर मैं कभी मर मिटा था . पर अब वो चमक नहीं रही .. ज्यादा उम्र भी तो नहीं हुयी है उसकी ..तो भी बुढ़ापा  झलक रहा था .. उसे कुछ देर तक एक टक देखता रहा .. अचानक उस की नज़र मुझपे पड़ी .. उसकी आँखों से झर –झर आंसू गिरने लगे.. मैंने अब वहाँ ज्यादा देर रुकना सही नहीं समझा .. मैं वहाँ से तेज़ कदमो से जाने लगा।


तभी उसकी आवाज़ ने मेरे कदमो को जड़ कर दिया .." बिना कुछ बोले चले जाओगे? कम से कम होली की मिठाई तो खा के जाओ .. "

मैं :" बस तुम्हे देखना चाहता था .. अब चलता हूँ .. बच्चों को मिठाईयां खिलाओ .. तुम्हारा बेटा बिलकुल तुम्हारी तरह दिखता है .."

मैं जाने लगा तभी पता नहीं दिल को क्या सूझा मैंने उससे कहा " एक बात पूछनी थी तुमसे  .. क्या मैं कभी तुमसे बात कर सकता हूँ ??"

अगर हाँ तो इस पर एक मिस्काल दे देना .."

"वापस अपनी ड्यूटी पर लौटना है .. ट्रेन पे बैठा ही था कि  एक मिस कॉल आया ... वो सही में मुझसे बात करना चाहती थी ...

एक तरफ दिल कह रहा था कि उससे ढेर सारी बातें करूं .. लेकिन दिमाग मना कर रहा था .. उसकी शादी शुदा जिंदगी में मेरे लिए कोई जगह नहीं थी। काफी जद्दोजह के बाद आखिरकार दिमाग जीत गया ............................मैंने उसका नम्बर मिटा दिया। 


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