Happiness is being @Home
Happiness is being @Home
चलिए आज आपको पुराने ज़माने की एक कहानी सुनाती हूँ।
बात 1990 की है.. रांची जैसे छोटे से शहर के एक मध्यम वर्गीय परिवार में एक बच्ची की किलकरी गूंजती है, अस्पताल में बच्ची की दादी खुशी में मिठाई बाँट रही हैं।
मिठाई खाने वाले भी सदमे में, कि बेटी के पैदा होने पर तो लोग मातम मनाते हैं, बहुत लोग तो आते ही विदा कर देते हैं। ये कैसी लक्ष्मी देवी हैं जो लक्ष्मी के आने की ख़ुशी मना रहीं हैं?
पर पूरा खानदान तो जैसे बस बेटी का ही इंतजार कर रहा था।
सबकी लाडली, घर की शोभा.. शोभना।
कुछ सालों बाद शोभना को खेलने के लिए एक और नन्ही सी जीती जागती गुड़िया मिल गई।
प्यारी सी नाजुक सी... सौम्या।
गुजरते वक़्त के साथ, मम्मी-पापा ने बस एक ही बात सिखाई...
हर चीज सीखो चाहे वो पढ़ाई-लिखाई हो या खेल-कूद, सिलाई-कढ़ाई हो या खाना बनाना हो या गाना बजाना।
भरोसा तो इतना कि, दुनिया के किसी कोने में छोड़ दो घूम-घाम कर वापस आ ही जाएगी।
उनके इस भरोसे की वजह से देश-विदेश में कितनी तूफानी कर ली शोभना ने।
माँ-पापा के आस पास होने का एहसास ख़ास होता है
घर वालो से मिलने को भी, अब दिल सपने संजोता है
मीठी नोंक-झोंक याद कर के चेहरे पे नूर होता है
रातो को घर की याद में अक्सर ये मन बेकल रोता है
सब त्योहारों का मतलब घर ही होता है
वरना वो दिन भी आम शाम - ओ -सहर होता है
घर का आँगन इतना पावन होता है
यादों में ये रैना जैसे भादो सावन होता है
मम्मी की फटकार में भी कितना प्यार होता है
पापा के पास हर दुविधा का जवाब हाज़िर होता है
सौम्या की तकरार में भी इतना लाड होता है
मेरी हर मुश्किल में साथ मेरा परिवार होता है
Happiness is family to me..
Happiness in the faces, I longed to see..
Happiness is to see my humble home..
Happiness is being at home...
