अतिक्रमण के आनंद

अतिक्रमण के आनंद

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हर खास और आम को सूचित किया जाता है की मैं इन दिनों अतिक्रमण में व्यस्त हूँ ,जब सब कर रहै है तो मैं क्यों पीछे रहूँ। जो होगा सो देखा जायगा। वैसे तो सरकार को कुछ दीखता नहीं है ,सब आँखों पर पट्टी बांध कर बेठे हैं ,फिर भी यदि किसी को कुछ दिख जायगा तो चाँदी का जूता काम करेगा, इस जूते में है बड़े बड़े गुण ।हर शहर ,गाँव ,सड़क,वन सब में अतिक्रमण की छाई बहार है, जिसमे जितनी हिम्मत हो उतना अतिक्रमण कर ले। दूसरे ने अतिक्रमण कर लिया यह रोना रोने के बजाय खुद भी कहीं अतिक्रमण कर लो , मुझे एक सरकारी कारिंदे ने सम्झाया था, जब मैं शिकायत लेकर गया था , उसने यह भी कहा की अतिक्रमण के लिए शेर सा दिल और जेब भरी होनी चाहिए। चिड़िया के दिल वाले क्या खाकर अतिक्रमण करेंगे।

उसने मुझे सीधा रास्ता बताया जहाँ भी खाली जगह देखो अपना काम शुरू करदो। कोई आये तो औकात के हिसाब से सुविधा शुल्क दे दो।जितना बड़ा जूता उतनी पोलिश वाला हिसाब चलता है।पड़ोसी की दीवार पर अपना मकान बना दो, दुकान के नीचे तहखाना खोल दो, सड़क पर टॉयलेट बना दो,फ्लेटों की छत पर पेंट हाउस बना कर बेच दो,एक मंजिला दुकान को बहु मंजिला करदो, शिकायत आने पर नगर निगम, विकास प्राधिकरण ,जिला कार्यालय में जाकर शिकायत करता के ख़िलाफ़ झूठी शिकायत कर दो, पोलिस में मामला दर्ज करदो ,किसी की परवाह मत करो, इस शहर में पचास प्रतिशत मकान, दुकान, बहुमंजिला इमारते अवेध है सरकार किस किस को गिराएगी, सब को हफ्ता देते रहो बस।अस्थायी अतिक्रमण का कोई केस नहीं बनता ,हर सड़क पर कर, दुपहिया वहां , दुकानों के सामानों का अतिक्रमण है , कोई कार्यवाही नहीं होती ,सबको अपना अपना हिस्सा मिल जाता है । 

ऊपर की बालकोनी को इतना बढ़ा दो की सामने वाले कि छत से टकरा जावे ।समरथ को नहीं दोष गुसाईं ।

साधो! अतिक्रमण के असली मजे तो गावों में देखो।खेत मेरा रास्ता पड़ोसी का,प्लाट मेरा, दिवार की जमीं पर पड़ोसी का कब्ज़ा, पड़ोसी गेट् खोल दे तो चुप रहो, नहीं तो फोजदारी का डर ।

यह किस्सा हर गावं , गली, मोहल्ला , शहर का है ।

हर शहर के विकास में तीन संस्थाएं है नगर निगम , विकास प्राधिकरण , जिलाधीश , लेकिन तीनो में कोई ताल मेल नज़र नहीं आता है जब कोई दुर्घटना हो जाती है तो सबको सब याद आता है, जिम्मेदारी टालने में सरकारी लोग माहिर होते हैं ,कम से कम बड़े शहरों में इन तीनों संस्थाओं को एक बड़े आइएस के अंडर में देकर जवाब तलब किया जा सकता है, मगर सरकार यह सब क्यों करे?

अतिक्रमण हटाने में भी खाओ , बनाने में भी खाओ ,कोई मर जाये तो मुवावजा देने में भी खा जाओ ,बस खाते रहो।पकडे जाने पर खिला कर बच निकलो।

अतिक्रमण केवल जमीनों का ही नहीं होता किसी का हक़ मार लेना भी अतिक्रमण ही है ।किसी की नौकरी खा जाना, किसी की भैंस ले जाना ,किसी को परेशां करना, भी अतिक्रमण है। बस में सीट के झगड़े भी अतिक्रमण की लड़ाई है ।हर कॉलोनी में सड़कों पर कारों का अतिक्रमण है दोपहिया वाहन भी अतिक्रमण की भेट चढ़ गए हैं,सड़कों पर आवारा जानवरों का अतिक्रमण है चलना मुश्किल है ।

साहित्य ,संस्कृति, कला आदि में भी अतिक्रमनकारियों की भीड़ हैं , किसी भी जेनुइन को पीछे धकेलने का कम बड़ी खूबी से किया जाता है। क का पुरस्कार ख हड़प लेता है। मंचो पर अतिक्रमण कर बैठ जाते हैं , संस्थानों पर कब्ज़ा कर लेते हैं , मरने पर ही छोड़ते हैं या मरने से पहले अपने कुल के चिराग को जमा देते हैं।राजनीति में अतिक्रमण के क्या उदाहरण दूं आप खुद ही अपने आस पास देख कर चिंता कीजिये ।

अतिक्रमण के आनंद भी है, बहुत सारे लोगों को अपनी दबंगता सिद्ध कर ने के लिए अतिक्रमण करना या करवाना पड़ता है ।

अतिक्रमण से स्वस्थ रहता है करने वाला और जिसका अतिक्रमण होजाता है वो हमेशा के लिए दब्बू घोषित कर दिया जाता है। अदालत जाने पर या पोलिस में जाने पर जान से हाथ धोना पड़ सकता है ।

साहित्य में अतिक्रमण के आनंद अलग है, पत्र पत्रिका में स्पेस के अतिक्रमण कर दिए जाते हैं, लेख की जगह विज्ञापन आ जाते हैं ,कहानी की जगह व्यंग से काम चलाना पड़ता है ।

अतिक्रमण आज की व्यवस्था की देन है , इसे प्रजातंत्र की जरूरी बुराई की तरह अंगीकार करे।

 

 

 

 

 

 

 

                



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