अपनी है वो पराई नहीं

अपनी है वो पराई नहीं

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दीपक के ऑफिस से आते ही उसकी माँ यानी मालती जी उसे इशारे से पास बुला कर खींचती हुई घर से बाहर सीढ़ियों के पास ले गई।"अरे माँ! बताओगे ऐसा क्या बात हुई की आप घर में नहीं बात कर सकतीं और यहां बाहर ले आईं?" दीपक ने झल्लाहट में कहा।

"वो अंदर बहू है ना.. मुझे कुछ बात करनी थी वो वहाँ नहीं कर सकती थी इसलिए।"

"ऐसी कौन सी बात है जो उसके सामने नहीं कह सकती.. वो इस घर की सदस्य और मेरी धर्मपत्नी है माँ।"

"कुछ बातें बाहर वाले कभी नहीं समझेंगे.. आखिर दूसरे के घर की लड़की है वो.. अब मैं रीमा से पूछ चुकी हूं इस बारे में नपा तुला जवाब दे चुकी है, वो तो अपनी ग़लती स्वीकारने से रही।"

"ऐसा भी क्या कर दिया आप बताओ जरा?"

"तूझे तो पता है.. 12 साल से घर का, दुकान का अकाउंट वही देखती है हमने कभी कोई सवाल नहीं किया कि घर की सदस्य है, अब उसका मतलब क्या है कि उसमे कोई भी घोटाला करेगी वो? पैसों की हेराफेरी हुई है, वो तो शुक्र है मैंने पुराने पास बुक पुन्नु से दिखवाई तो ये भेद खुला.. कई बार पैसे निकाले गए हैं फिर कई बार जमा हुए है। जब मैंने बहू से पूछा तो बोली पुरानी बात है इतना याद नहीं रहता। ज़रूर मायके वालों या अपने किसी दोस्त रिश्तेदार को दिए होंगे फिर धीरे धीरे वापस डाले, बताओ वो भी बिना पूछे।"

"माँ पहली बात रीमा बाहर वाली नहीं है.. दूसरी बात उसने अपनी सारी पढ़ाई लिखाई आप लोगों के नाम क़ुर्बान कर दी.. मेरे कहने पर भी कोई जॉब नहीं ली की अपने घर पर जरूरत है मेरी। आज बारह साल के उसके मेहनत का जवाब तुम शक करके दे रही हो? क्या इन पैसों पर उसका कोई हक नहीं? वो आप लोगों की कितनी कड़वी बातें सह लेती हैं जो मुझे भी ना बर्दाश्त हो। और रही बात उन पैसों की तो मुझे अभी याद आया मैंने ही उससे कहा था कि मेरा पर्सनल एटीएम ब्लॉक हुआ है, मैं दुकान वाले अकाउंट में ट्रांसफर करता हूं तुम अपने सेविंग अकाउंट में ट्रांसफ़र कर मुझे निकाल कर दो.. मुझे अर्जेंट था। और मैं उसके खाते में डायरेक्ट नहीं भेज पा रहा था अकाउंट एड नहीं था। छोटी सी बात थी.. मुझसे सीधे से पूछने के बजाय तुम्हें मिर्च मसाला लगाना था।" दीपक गुस्से में अंदर चला गया।

रीमा जैसी औरतों को अपनी आधी जिंदगी गुजार देने के बाद भी बराबरी के अधिकार के लिए तरसना पड़ता है। बाहर वालों की तरह हर समय अग्निपरीक्षा देनी होगी कब तक? बहू दूसरे के घर की कैसे हुई? 

रीमा का पति उस पर विश्वास करता था और सपोर्ट भी पर कई मामलों में औरतें अकेली पड़ जाती है खुद को साबित करते करते। सांसारिक दुनिया में जब कर्तव्य बराबरी के है तो अधिकार, प्यार और विश्वास भी बराबरी का होना चाहिए। 



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