अम्मा जी
अम्मा जी
अम्मा जी बरगद की छाँव थीं पूरे परिवार के लिए सुबह सुबह निवृत होकर,नहा धोकर, पूजा पाठ कर वे बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ जातीं।कभी अखबार तो कभी कोई
पत्रिका पढ़ती रहतीं।चाय उन्हें वहीं मिल जाया करती थी। कभी बहू तो कभी पोता,
पोती दे जाया करते थे।नाश्ता और खाना सदा अन्दर ही बैठ के किया करतीं।
साफ सुथरे झक्कास कपड़ों में वे सदा बड़ी सी बिन्दी लगाए रहतीं। उनसे मिलनेवाले लोग बहुत जल्दीबउनसे प्रभावित हो जाया करते थे। बातचीत में चतुर खुशमिजाज महिला थीं।
घर में आने वाला कोई भी हो चाहे
दूध वाला,पेपर वाला, कुरियर वाले
सबके नाम, पता ठिकाना उन्हें जुबानी याद रहते।मजाल है उनकी इजाजत के बिना घर में कोई प्रवेश कर जाए।घर में उनका एकछत्र
राज था पर किसी से उनकी अनबन
या मन मुटाव नहीं था। वे सबका दिल
बहुत आसानी से जीत लेती थीं।वे मीठी नीम थीं।
अम्माजी अब नहीं हैं पर पूरे घर में उनका
आभास आशीर्वाद की तरह सबपर
बरसता रहता हैॆ।
