Vimla Jain

Others

4.7  

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अजनबी फरिश्ता

अजनबी फरिश्ता

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1975 की बात है हमारे कॉलेज से हमारी मैडम ने हमको फेयरवेल पार्टी दी थी हम सब ने बहुत मजे करे। क्योंकि वह हमारी कॉलेज का आखिरी दिन था सखियों के साथ मैडम के साथ। एग्जाम भी खत्म हो गए थे तो सब अपने अपने रास्ते जाने वाले थे बहुत खुश थे बातें करते करते बाहर निकले मुझे यह ध्यान नहीं रहा कि मैं जिस रोड पर जा रही हूं जयपुर में इतनी सुनसान रोड पर रात को जाना उस समय सुरक्षित नहीं माना जाता था।

 ध्यान नहीं रहा नहीं तो किसी को भी कहती तो लेने आ जाते खैर आगे समय बड़ा सुहावना था।

शाम और रात के बीच का समय। थोड़ी ठंडक भी हो गई थी गर्मी से। मैं फेयरवेल पार्टी पूरी करके अपने दोस्तों के साथ गप गोष्टी करते हुए आराम से चली जा रही थी।

एक-एक करके सब अपने अपने रास्ते की तरफ मुड़ गए। साड़ी पहन रखी थी इसलिए पैदल ही आई थी। अब मेरे को ध्यान आया जब मैं अकेली रह गई मन में डर लगा पसीना भी आया। माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थी। मोती डूंगरी रोड थी। जिसमें सब कहते थे रात में नहीं आना चाहिए सुरक्षित नहीं है ।पर मैंने देखा रात तो पड़ ही गई है ।

अब धीरे धीरे नवकार मंत्र बोलते हुए चल रही थी।तभी पीछे नजर गई । मैंने देखा एक लड़का साइकिल पर मेरे पीछे-पीछे चला आ रहा है।

अब तो और भी डर लगने लगा मैं जल्दी जल्दी चलने लगी ।मेरे पीछे जल्दी-जल्दी साइकिल चलाने लगा ।मन में तो बहुत डर के कारण पसीना छूट रहा था।मगर अपने आप को हिम्मतवाला बताने के लिए मुंह पर कुछ नहीं आने दिया।

 चलते रहे चलते रहे।सोचा अगर जरा सा भी पास आता है तो फिर कुछ करना पड़ेगा ।ऐसे करते हुए यूनिवर्सिटी आ गई वहां से मैं मुड़ी।

वह साइकिल वाला लड़का भी पीछे पीछे।अब रोड सूनी होने से मन में बहुत डर लग रहा था।

बहुत जल्दी जल्दी चलने लगी। मगर हाय रे साड़ी पहली बार पहनी हुई साड़ी में जल्दी चलना आया ही नहीं पांव फंसने लगे। तो भी मुझे घर पहुंचने की जल्दी थी,और उस से पीछा छुड़ाने की जल्दी थी। मैं अपने घर के रास्ते की ओर मुड़ी। मैंने देखा वह भी मेरे घर की ओर मुड़ गया। अब तो मन में बहुत ही घबराहट होने लगी लगा आज का दिन तो वास्तव में बहुत खराब है।अब तो मैं इससे कैसे बचुंगी। फिर भी नवकार मंत्र बोलते बोलते घर तक पहुंचे।क्या डर लग रहा था।घर के अंदर मुड़ी पीछे मुड़कर देखा तो वह लड़का वापस अपनी साइकिल मोड़ के जा रहा था। मैंने उसको आवाज लगाई और रोका। वह रुक गया मैंने उससे पूछा

"तुम कौन हो?मेरे पीछे क्यों आ रहे थे ? क्या तुम मुझको जानते हो?"

वह हंसकर बोला "आप मुझे नहीं जानते, मगर मैं आपको जानता हूं। आप उत्तम की बहन है तो मेरी भी बहन हुईं ।मैंने आपको अकेले जाते देखा तो मैंने सोचा आप को सुरक्षित घर पहुंचा दूं। मगर आप मुझ को नहीं जानती थी इसलिए आप डर गई। आप जितना तेज चलती मैं उतनी के साइकिल चला रहा था भगवान का शुक्र है कि आप घर पहुंच गए अच्छी तरह से।"

मैं पीछे मुड़के उसको धन्यवाद बोलती उससे पहले ही वह निकल लिया। ना उसने नाम बताया कि कौन है। मेरे लिए तो वह अजनबी फरिश्ता बनकर कर ही आया था। सच में जिंदगी में कभी-कभी ऐसे फरिश्ते मिल जाते हैं। जिनको हम गलत समझ लेते हैं। और जैसे ही जानकारी मिलती है तब मन में पछतावा होता है कि हमने उसको कितना गलत समझा।



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