Charumati Ramdas

Children Stories Drama Children

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Charumati Ramdas

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आऊट हाऊस में आग, या हिम पर कारनामा

आऊट हाऊस में आग, या हिम पर कारनामा

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मैं और मीश्का हॉकी खेलने में इतने मगन हो गए, कि बिल्कुल दुनिया की सुध भी भूल गए, और जब पास से गुज़रते हुए एक अंकल से टाईम पूछा, तो उसने कहा:

 "एक्ज़ेक्ट दो बजे हैं।"

मैंने और मीश्का ने अपने-अपने सिर पकड़ लिए। दो बज गए! कोई पाँच मिनट ही खेले होंगे, और दो भी बज गए! ये तो भयानक बात हो गई! हम तो स्कूल में लेट हो गए! मैंने अपनी बैग उठाई और चिल्लाया:

 "चल भाग, मीश्का!"

और हम लपके, बिजली की तरह। मगर बहुत जल्दी थक गए और धीरे-धीरे चलने लगे।

"जल्दी मत कर, देर तो हो ही गई है।"

मैंने कहा:

 "ओह, पड़ेगी।।।पेरेन्ट्स को बुलाएँगे! बिना किसी वाजिब कारण के देर जो हो गई।"

मीश्का ने कहा:

"कारण सोचना पड़ेगा। वर्ना अनुशासन कमिटी में बुला लेंगे। चल, जल्दी से सोचते हैं!"

मैंने कहा:

 "चल, कह देंगे कि हमारे दाँतों में दर्द था और हम उन्हें निकलवाने गए थे।"

मगर मीश्का ने मेरी हँसी उड़ाई:

 "दोनों के दाँत एकदम दर्द करने लगे, हाँ ? कोरस में दर्द कर रहे थे!।।।नहीं, ऐसा नहीं होता। और फिर! अगर हमने उन्हें निकलवा दिया, तो छेद कहाँ हैं ?"

मैंने कहा:

 "क्या किया जाए ? समझ में नहीं आ रहा...ओय, कमिटी में बुलाएँगे और पेरेन्ट्स को बुलाएँगे...सुन, पता है, क्या ? कोई मज़ेदार और हिम्मतवाला बहाना सोचना चाहिए, जिससे कि देर से आने पर भी हमारी तारीफ़ की जाए, समझा ?"

मीश्का ने कहा;

 "वो कैसे ?"

 "हूँ, मिसाल के तौर पे, सोचते हैं, कि जैसे कहीं आग लगी थी, और हमने एक छोटे बच्चे को आग से बाहर निकाला, समझ गया ?"

मीश्का ख़ुश हो गया:

 "आहा, समझ गया! आग के बारे में बहाना बना सकते हैं, वर्ना, अगर और भी बढ़िया बात बनानी हो, तो ये कह सकते हैं कि तालाब की सतह पर जमी बर्फ की सतह टूट गई, और ये बच्चा – धड़ाम्! ...पानी में गिर गया! और हमने उसे बाहर खींचा...ये भी बढ़िया है!"

 "हाँ, है तो," मैंने कहा, "टूटे हुए तालाब वाली बात ज़्यादा मज़ेदार है!"

हमने कुछ देर और बहस की, कि इन दोनों में से ज़्यादा मज़ेदार और बहादुरी वाला कारनामा कौन सा है, मगर हम बहस पूरी न कर सके और स्कूल पहुँच गए। क्लोक-रूम में हमारी क्लोक-रूम वाली पाशा आण्टी ने अचानक कहा:

 "ये तू इतना टूटा-फूटा कहाँ से आ रहा है, मीश्का ? तेरी कॉलर के तो सारे के सारे बटन उखड़ गए हैं। ऐसे चीथड़े को पहन कर तो क्लास में नहीं जा सकता। अब तुझे देर तो हो ही गई है, चल तेरे बटन ही सी देती हूँ! ये देख, मेरे पास बटन्स का पूरा डिब्बा है। और तू, डॆनिस्का, क्लास में जा, यहाँ डोलने की कोई ज़रूरत नहीं है!"

मैंने मीश्का से कहा:

 "तू जल्दी से आ जाना, वर्ना, क्या मैं अकेला ही तूफ़ान का सामना करूँगा ?"

मगर पाशा आण्टी ने मुझे भगाया:

 "जा, तू चल, और ये तेरे पीछे-पीछे आ रहा है! मार्च!"

मैंने हौले से अपनी क्लास का दरवाज़ा थोड़ा सा खोला, सिर अन्दर घुसाया, और देखा कि कैसे पूरी क्लास बैठी है, सुना कि कैसे रईसा इवानोव्ना किताब में से डिक्टेशन दे रही हैं:

"चूज़े चहचहाते हैं..."

और ब्लैकबोर्ड के पास खड़ा है वालेर्का और तिरछे अक्षरों में लिख रहा है:

 "चूज़े हचहचाते हैं..."

मैं अपने आप को रोक न सका और हँस पड़ा, रईसा इवानोव्ना ने नज़र उठाई और मुझे देखा। मैंने फ़ौरन पूछा:

 "क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ, रईसा इवानोव्ना ?"

 "आह, ये तू है, डेनिस्का," रईसा इवानोव्ना ने कहा। "आ जा! इंटरेस्टिंग, तू कहाँ ग़ायब हो गया था ?"

मैं क्लास में घुसा और अलमारी के पास रुक गया। रईसा इवानोव्ना ने मेरी तरफ़ देखा और 'आह-आह' करने लगी:

 "ये क्या हाल बना रखा है ? तू कहाँ से लोट-लोट के आ रहा है ? आँ ? संक्षेप में बताओ!"

मैंने तो अभी तक कुछ सोचा ही नहीं था, और मैं संक्षेप में जवाब नहीं दे सकता, बल्कि हर चीज़ विस्तार से बताने लगा, जिससे कि समय खिंचता जाए:

"मैं, रईसा इवानोव्ना, अकेला नहीं था...मैं और मीश्का...हम दोनों थे...तो, ऐसा हुआ। ओहो!...कैसा तो हुआ। ऐसे और वैसे! वगैरह, वगैरह।"

रईसा इवानोव्ना बोलीं:

 "क्या-क्या ? तू थोड़ी साँस ले ले, शांत हो जा, धीरे-धीरे बोल, वर्ना तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है! क्या हुआ था ? तुम लोग कहाँ थे ? बोल, तो सही!"

मुझे बिल्कुल भी नहीं मालूम था कि कहना क्या है। मगर बोलना तो पड़ेगा। मगर बोलूँगा क्या, जब बोलने के लिए कुछ है ही नहीं ? तो मैं कहने लगा:

 "मैं और मीश्का। हाँ। वो...जा रहे थे, जा रहे थे। किसी को नहीं छू रहे थे। हम स्कूल जा रहे थे, जिससे कि देर न हो जाए। और अचानक - ऐसी बात! ऐसी बात हुई, रईसा इवानोव्ना, कि बस हो-हो-हो! ओह, तू! आय-आय-आय।"

अब तो क्लास में सब हँसने लगे और शोर मचाने लगे। वालेर्का तो ख़ास तौर से ख़ूब ज़ोर से हँस रहा था। क्योंकि उसे अपने 'चूज़ों' के लिए 'वेरी पुअर' ग्रेड मिलने का आभास हो गया था। मगर, अब क्लास में पाठ रुक गया था, और मेरी तरफ़ देखकर ठहाके लगाए जा सकते थे। वो लोटपोट होने लगा। मगर रईसा इवानोव्ना ने जल्दी से इस 'बज़ार' को बन्द कर दिया।

 "धीरे," उन्होंने कहा, "चल, बात को समझने की कोशिश करते हैं! कराब्लेव! जवाब दे, तुम लोग कहाँ थे ? मीशा कहाँ है ?"

मेरे दिमाग़ में इन सब कारनामों से उथल-पुथल होने लगीं, और मैंने फ़ौरन बक दिया:

 "वहाँ आग लगी थी!"

सब लोग फ़ौरन चुप हो गए। रईसा इवानोव्ना का मुँह बदरंग हो गया और वो बोलीं:

 "कहाँ थी आग ?"

मैंने कहा:

 "हमारे घर के पास। कम्पाऊण्ड में। आऊट-हाऊस में। धुआँ निकल रहा है – घने-घने बादलों की तरह। और मैं और मीश्का उसके नज़दीक से गुज़र रहे हैं।।।क्या कहते हैं।।।पिछले प्रवेश द्वार के पास से! इस दरवाज़े पर किसी ने बाहर से लकड़ी का बोर्ड लगा दिया था। तो ये बात थी। हम जा रहे हैं! और वहाँ से निकल रहा है धुआँ! और कोई बारीक आवाज़ में चीख रहा है। उसका दम घुट रहा है। तो, हमने बोर्ड हटाया, और वहाँ है एक छोटी बच्ची। रो रही है। उसका दम घुट रहा है। हमने उसके हाथ-पैर पकड़े – बचा लिया। तभी उसकी मम्मा भागी-भागी आई और बोली: "तुम लोगों का उपनाम क्या है, बच्चों ? मैं अख़बार में तुम्हारे बारे में 'थैन्क्स' लिखूँगी"। मैंने और मीश्का ने कहा: "ये आप क्या कह रही हैं, इतनी छोटी बच्ची के लिए थैन्क्स की कोई बात ही नहीं है! थैन्क्स की कोई ज़रूरत नहीं है। हम शर्मीले टाइप के लड़के हैं"। बस। और मैं और मीश्का वहाँ से निकल गए। क्या मैं बैठ सकता हूँ, रईसा इवानोव्ना ?"

वो उठकर मेज़ के पीछे से बाहर निकलीं और मेरे पास आईं। उनकी आँखों में गंभीरता थी और उनमें सुख की भावना थी।

उन्होंने कहा:

 "कितनी अच्छी बात है! मैं बहुत, बहुत ख़ुश हूँ, कि तुम और मीश्का इतने बहादुर हो! जा बैठ। बैठ जा। बैठ ना।।।"

मैंने देखा कि वो मुझे सहलाना और 'किस' करना चाहती थीं। मगर मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा था। मैं चुपचाप अपनी जगह पे गया, पूरी क्लास मेरी ओर देख रही थी, जैसे मैंने सचमुच में कुछ 'ख़ास' किया हो। मेरी रूह को जैसे बिल्लियाँ खरोंच रही थीं। मगर तभी दरवाज़ा खुला, और देहलीज़ पे दिखाई दिया मीश्का। सब मुड़े और उसकी ओर देखने लगे। रईसा इवानोव्ना ख़ुश हो गईं।        

 "अन्दर आ जा," उन्होंने कहा, "अन्दर आ, मीशुक, बैठ, बैठ जा, बैठ ना, शांत हो जा। तू भी शायद बेहद परेशान हुआ था।"

 "और नहीं तो क्या!" मीश्का कहने लगा। "डर रहा था कि आप गुस्सा हो जाएँगी।"

 "हूँ, जब तेरे पास कोई वाजिब कारण है," रईसा इवानोव्ना ने कहा, "तो, तुझे परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं थी। आख़िर तूने और डेनिस्का ने एक इन्सान को बचाया है। रोज़ रोज़ तो ऐसा नहीं होता।"

मीश्का ने अचरज से मुँह भी खोल दिया। ज़ाहिर था, कि वो पूरी तरह भूल गया था कि हमने किस बारे में बात की थी।

 "इ-इ-इन्सान को ?" मीश्का बोलने लगा, वो हकला भी रहा था। "ब-ब-बचाया ? मगर क-क-किसने बचाया ?"

अब मैं समझ गया कि मीशा सब गुड़-गोबर कर देगा। मैंने उसकी मदद करने का फ़ैसला किया, जिससे उसे झंझोडूँ और उसे याद आ जाए, और मैं उसकी तरफ़ देखकर बड़े प्यार से मुस्कुराया और बोला:

 "कुछ नहीं कर सकते, मीश्का, ये नाटक बन्द कर...मैंने सब कुछ बता दिया है!"

मैं उसे आँखों से इशारे कर रहा था, कि मैंने झूठ बोल दिया है, और वो भंडा न फ़ोड़ दे! मैं उसे आँख़ मार रहा था, दोनों आँखों से, और अचानक मैंने देखा – उसे याद आ गया था! मैंने फ़ौरन अंदाज़ा लगा लिया कि आगे क्या करना है! हमारे प्यारे मीशेन्का ने आँखें झुका लीं, जैसे दुनिया में मम्मा का सबसे शर्मीला बच्चा हो, और इतनी बेसुरी, शराफ़त भरी आवाज़ से बोलने लगा।

 "तूने ऐसा क्यों किया! छोटी सी बात..."

वो असली आर्टिस्ट के समान लाल भी हो गया। ओय, तू भी न, मीश्का! मुझे उससे इसकी उम्मीद नहीं थी। वो अपनी सीट पे यूँ बैठ गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो और नोट-बुक खोलने लगा। सारे लोग इज़्ज़त से उसकी तरफ़ देख रहे थे, और मैं भी। शायद, बात यहीं ख़तम भी हो जाती, मगर तभी जैसे शैतान ने मीश्का की ज़ुबान खींची, उसने चारों तरफ़ देखा और बिना बात के बोल पड़ा;

 "वो बिल्कुल भी भारी नहीं था। क़रीब दस-पन्द्रह किलो, इससे ज़्यादा नहीं।।।"

रईसा इवानोव्ना ने पूछा:

 "कौन ? कौन भारी नहीं था, दस-पन्द्रह किलो का ?"

 "वही लड़का।"

 "कौन सा लड़का ?"

 "वही, जिसे हमने बर्फ की पर्त के नीचे से बाहर खींचा था।।।"

"तू कुछ गड़बड़ कर रहा है," रईसा इवानोव्ना ने कहा, "वो तो लड़की थी ना! और फिर वहाँ बर्फ की जमी हुई सतह कहाँ से आई ?"

मीश्का अपना ही राग अलापे जा रहा था:

 "कैसे – कहाँ से बर्फ ? सर्दियों का मौसम है, इसीलिए जमी हुई बर्फ की पर्त है! पूरा 'चिस्तिये प्रूदी' तालाब जम गया है। मैं और डेनिस जा रहे हैं, सुनते क्या हैं – कि टूटी हुई बर्फ के नीचे से कोई चिल्ला रहा है। हाथ-पैर मार रहा है और चीं-चीं कर रहा है। खुरच रहा है, हिल रहा है और हाथों से उसे पकड़ रहा है। ऊह, बर्फ भी कैसी! बर्फ़, बेशक, टूट रही थी! तो, मैं और डेनिस रेंगते हुए वहाँ पहुँचे, इस लड़के को हाथों से, पैरों से पकड़ा – और खींच लिया किनारे पे। तभी उसके दादा भागते हुए वहाँ पहुँचे, ख़ूब आँसू बहा रहे थे।।।

अब मैं कुछ भी नहीं कर सकता था: मीश्का ऐसे झूठ बोले जा रहा था, जैसे लिख कर लाया हो, मुझसे भी ज़्यादा अच्छा। क्लास में सब समझ गए कि वो झूठ बोल रहा है, और ये कि मैं भी झूठ बोला था, और मीशा के हर शब्द के बाद सब लोट-पोट हो रहे थे, मैं उसे इशारे किए जा रहा था, जिससे वो चुप हो जाए और ये झूठ बन्द करे, क्योंकि वो, वैसा झूठ नहीं बोल रहा था, जैसा बोलना चाहिए था, मगर कहाँ! मीश्का ने मेरे इशारों को देखा ही नहीं और तोते की तरह बके जा रहा था:

 "तो, उस दद्दू ने हमसे कहा: "इस बच्चे की ख़ातिर मैं तुम्हें घड़ी प्रेज़ेंट करता हूँ"। हमने कहा: "ज़रूरत नहीं है, हम बड़े शर्मीले लड़के हैं!"

अब मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और चिल्लाया:

 "मगर ये आग थी! मीश्का गड़बड़ा गया है!"

 "तेरा दिमाग़, क्या सरक गया है ? बर्फ के छेद में आग कैसे हो सकती है ? तू ही सब भूल गया है।"

 क्लास के लड़के तो ठहाके मार-मार के जैसे बेहोश होने लगे, जैसे मर रहे हैं। रईसा इवानोव्ना ने इत्ती ज़ो-र से मेज़ थपथपाई! सब चुप हो गए। मीश्का वैसे ही खड़ा रहा- मुँह खोले।

रईसा इवानोव्ना ने कहा:

 "झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती! कितने शर्म की बात है! मैं तो इन्हें अच्छे लड़के समझती थी!...अपना पाठ जारी रखते हैं।"

सबने एकदम हमारी ओर देखना बन्द कर दिया। क्लास में शांति और कैसी-तो उकताहट थी। और, मैंने मीश्का को चिट्ठी दी: देख रहा है ना, सच ही बोलना चाहिए था!"

उसने जवाब लिखा: "हाँ, बेशक! या तो सच बोलो या फिर ज़्यादा अच्छी तरह तय करके बोलो"।


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