आस्था से प्रभु कृपा तक
आस्था से प्रभु कृपा तक
“सुबह के ग्यारह बज गए हैं अभी तक चाय नसीब नहीं हुई।”पत्नी सुबह उठते से ही पूजा पाठ में लग जाती है- चार घंटे रोज, तीन सौ पैंसठ दिन, गुरु ने ऐसा रंग दिया है कि छूटता ही नहीं।
“रुको, अभी आरती करके आ रही हूँ।”
आरती के बाद इनकी प्रार्थना होगी जिसमें वे प्रभु कृपा की आशीष मांगेगी- तू ही एक आसरा है, तूने हर बार मेरा काम किया है, अब भी करना प्रभु (जैसे भगवान उनका नौकर लगा है।) सब पर कृपा बनाए रखना। इनकी भूलचूक माफ़ करना अज्ञानी और मूढ़ है। ये समझते है कि उनके किये से होता है जबकि काम तो तू ही करता है। एक तू ही तो कर्ता है।
वह समझती है और पूरा विश्वास भी करती है कि उसके पूजा पाठ की वजह से ही इस घर के सारे दुःख दर्द मिट गए हैं और घर में खुशहाली आई है। सबके के पास रोजगार है, अपना मकान बन गया। घर की दुकान बन गई। बेटे धंधे से लग गए। यानी पति बेटों की मेहनत का कोई मोल नहीं, फालतू मेहनत की।
“मैं भी तुम्हारी तरह चार घंटे पूजा में लगा रहता तो खुशियाँ दुगनी हो जाती।”
“नास्तिक की भगवान नहीं सुनते। वे तो भक्तों के भाव के मुरीद है। मेहनत करने और सही दिशा में सोचने की प्रेरणा भी वही देता है। तुम्हारे नास्तिकपने को माफ़ कर मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लेता है। विश्वास की शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि अभावों से भरा हमारा घर धन-धान्य से भर गया है।”
“चल छोड़, नाश्ता और चाय बना अब बारह बजे तुम नाश्ता कराओगी तो खाना कब बनेगा? वही रोज तीन बजे तक बनता है शाम में तो फिर दलिया और दूध ही खाना होगा। दीवार से सिर कौन टकराए अपना ही माथा फूटेगा।”
तभी पत्नी चाय नाश्ता ले आई।
“नास्तिक कहाँ हूँ तेरे साथ हवन में बैठता हूँ, पंडित कहता है जिसे हाथ जोड़ता हूँ, मन्त्र बोलता हूँ- ॐ भू भुस्वः तस्त वितुर्वर्नेयेम भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न प्रचोदयात।”
“कुछ भी कर लो दिल में तो रत्ती भर आस्था नहीं है।”
“सारा श्रेय तो तुम्हारा ही है मेरा तो कोई योगदान ही नहीं है।”