बस दिन भर मैं अकेला घर बैठा रहता था। कुछ देर टीवी देखना बाद में कमरे की बालकनी मे बैठकर थोड़ी देर बाजार का दृश्य देखना
पवन यह सोच कर शहर रिक्शा चलाने आया था कि वह कुछ पैसे कमा कर घर भेजेगा। लेकिन
रेणुका - देखो जी। आपने ये अचानक गाँव जाने की क्या सोची हैं। पहले हमसे पूछ तो लिया होता?
तब जीत भी साथ-साथ होती, हार भी साथ-साथ। अब सब कुछ बदल गया है। सब कुछ डिजिटल भी है और सिंगल भी।
अब हम भी क्या करें साहब, इतनी लम्बी रात, अब जागते हुए भला काटे भी कैसे। तो जो कोई भी मिलता है उससे दुख दर्द बाँट लेते है...
सालों में पहली बार सानिया ने महसूस किया, हवा में बारूद की बू नहीं थी...