आखिर मन में एक आकांक्षा है जो , मन में संकल्प , एक विश्वास लेकर बुदबुदाने लगी। होकर मायूस यों न शाम सा ढलते रहिए, ...
ओह निशि तू ये किस भ्रमजाल में फँस गयी। ये दोगले मुखौटों का जंगल है जहाँ जो एक बार फँस गया तो उसका यही हश्र होता है लेकिन
लेखक : अलेक्सान्द्र कूप्रिन अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
मुकेश को साथियों का ऐसा व्यवहार बहुत बुरा लगता था,
अपनी शादी की बात सुन कर मिनी के सारे सपने टूट गए पर पिताजी ने कहा.. देखो बेटा, मेरी इतनी ही क्षमता है क्योंकि मेरे पास ब...
फिर आभा अपने को रोक नहीं पायी। मन का सारा ग़ुबार आँसुओं के साथ बह निकला।