आपकी बात पर विचार किया जाएगा लेकिन आपको सामने आकर अपनी बात रखनी चाहिए
उदय का शरीर चमक रहा था अब वह उदय शंकरनाथ बन गया था
लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
इस धरती को बचा नहीं तो तेरा विनाश अटल हैं !
लेकिन, सच तो यहीं है की मुझे ही वनवास का आदेश मिला है तुम्हारा जाना श्रेयस्कर नहीं होगा
अब वायरस जहाँ बैठा है उसे हटाना है