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हर मोड़ पर...

हर मोड़ पर इक  ख्वाहिस मिलती है यहां जनाब इस इश्क के बाजार का हाल ऐसा है सपने हजारों सजाकर महबूब निकला था लाखों गम समेटकर आज घर आया है।। अप्रिय"""

By विनोद महर्षि'अप्रिय'
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