धन -दौलत से भरे इस युग में मनुष्य ही क्यों मनुष्य का दुश्मन बना है धन -दौलत से भरे इस युग में मनुष्य ही क्यों मनुष्य का दुश्मन बना है
जहां तक पड़ रही थी निगाहें, धुआं ही धुआं था फैला। जहां तक पड़ रही थी निगाहें, धुआं ही धुआं था फैला।
नज़र जाए जहाँ तक मौत का मंज़र है! उजड़ी बस्तियों मे मेरा घर किधर है? नज़र जाए जहाँ तक मौत का मंज़र है! उजड़ी बस्तियों मे मेरा घर किधर है?
त्रिवेणी गुलज़ार साब की ईजाद की हुई फॉर्म है. जिसमें दो मिसरों का एक शे'र होता है. फिर एक तीसरी लाइन... त्रिवेणी गुलज़ार साब की ईजाद की हुई फॉर्म है. जिसमें दो मिसरों का एक शे'र होता ह...