हूँ तीक्ष्ण मैं बुद्धि से लाग लपेट से अंजान हूँ मैं, दो टूक मे मैं रख देती! हूँ तीक्ष्ण मैं बुद्धि से लाग लपेट से अंजान हूँ मैं, दो टूक मे मैं रख देती...
कभी शीतल तो कभी तीक्ष्ण, कभी अपनी तो कभी परायी, कभी शीतल तो कभी तीक्ष्ण, कभी अपनी तो कभी परायी,