कलम काँप उठती है जब देखती हूँ अनखिली कली को मुरझाते हुए। न मन करता है जीने का, न आराम से कुछ लिख पा... कलम काँप उठती है जब देखती हूँ अनखिली कली को मुरझाते हुए। न मन करता है जीने का, ...