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Archana Verma

Others

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Archana Verma

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ज़िन्दगी एक शतरंज

ज़िन्दगी एक शतरंज

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ज़िन्दगी एक शतरंज की बिसात सी चलती रही

किसी के शह पे किसी की मात होती रही


बिछा रखे थे एहसासों के मोहरें

एक राजा को बचाने के लिए

और एक एक कर के

उन मोहरों की ज़िन्दगी कुर्बान होती रही


ये खेल बहुत अलग सा है

कोई न जाने

किस की चाल में क्या छिपा है

दिमाग वाले तो जीत गए और

दिलजलों की हार होती रही


वज़ीर को लगा के वो

बहुत खास है

क्योंकि राजा रहता हमेशा

उसके साथ है

वफ़ा का ज़िक्र चला तो

उस वज़ीर की बात होती रही


राजा हमेशा वज़ीर के पीछे

ही चलता रहा

अपनी जान बचाने वो

उसको ही आगे करता रहा

और वज़ीर इसको ही

साथ समझता रहा

असल जंग जीती उन मोहरो

और प्यादों ने

पर पीछे चलने वालों की जय जयकार

होती रही


नाम गुम गया कही

उस वज़ीर की वफादारी का

वो तो सिर्फ एक मोहरा था

उस राजा की हुकूमत का

जिसको बचाने के लिए


ऐसे कितनो के अरमानो की बलि चढ़ती रही


जब खेल ख़त्म  हुआ तो

राजा ने था बहुत  कुछ गवाया

पर अपनी जीत के आगे

उसको कुछ भी नज़र न आया

और इस तरह उस जीत के

जशन की रात चलती रही


जिंदगी का खेल भी ऐसा है

कोई खुद के लिए

तो किसी के लिए

मर मिटा है

और सबकी ज़िन्दगी यूँही एक

शतरंज की बिसात सी चलती रही

किसी के शह पे किसी की मात होती रही



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