यूँ ही
यूँ ही
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यूँ रह रह के सन्नाटों में देखो डर गया हूँ मैं,
खुद ही को ढूँढ़ता फिरता हूँ कि किधर गया हूँ मैं।
मंज़िलें कुछ नहीं होती फ़कत अफवाह के अलावा,
चलते-चलते राहों में ही हो सफर गया हूँ मैं।
मेरी आँखों के आगे कत्ल सरेआम हो जाये,
फिर भी कुछ नहीं कहता कि जैसे मर गया हूँ मैं।
फुटपाथ पर सोये हुए मुफलिस के बगल में,
मैंने भी सो के देखा रात तो ठिठुर गया हूँ मैं।
तेरी आँखों में ज़रा गौर से क्या देख लिया था,
तुझे पाने को बच्चों की तरह मचल गया हूँ मैं।