यह कौन मुझे
यह कौन मुझे
सूरज की उगती किरणों से एक राज उद्धेलित होता है ।
चुपके- चुपके यह कौन मुझे नव -छंदों में पिरोता है।
यह कौन फैला के बाहें अपनी अंक में अपने भर लेता है।
यह कौन साथ -साथ मेरे हाथ में हाथ लिए चलता है।
सूरज की उगती किरणों से एक राज उद्वेलित होता है।
अंबर की उस लाली से यह कौन स्वर लिए आता है।
पूर्व से आती हवाओं में यह कौन मुझे छू लेता है ।
अपने गीतों को स्वर देकर कौन मुझे नव -गीतों में पिरोता है।
सूरज की उगती किरणों से एक राज उद्धेलित होता है ।
जब शाम ढले खग आए घर ।
कौन इंतजार में आंसू पिरोता है ।
चुपके -चुपके ढलते सूरज को कौन प्रश्नों में संजोता है।
कौन मुझे उगती किरणों से,
संदेश दे के बुलवाता है।
नव रंगों के नव सपनों में पिरो अनंत लोक ले चलता है।