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Prabhat Pandey

Others

4.3  

Prabhat Pandey

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यह कैसा अच्छा दिन आया है

यह कैसा अच्छा दिन आया है

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इन्सानियत को हमने रुलाया है 

आज डर ने मुकाम दिल में बनाया है, 

मंदिर से अधिक मधुशालाएं हैं 

ऐसा बदलाव अपने देश में आया है ,

ये वस्त्रहीन सभ्यता अपने देश की नहीं 

पर्दा ही आज ,लाज पर से उठाया है 

बेकारी ,भूंख प्यास ने सबको रुलाया है 

भारत में यह कैसा अच्छा दिन आया है 

साहित्य से क्यों दूर हैं आज की पीढ़ियां 

इस विषय पर क्यों शोध नहीं है 

कैसा ये सभ्य समाज बन रहा है 

आधुनिक स

ंगीत अश्लीलता परोस रहा है 

आज सियासत क्रूरता को वर रही है 

सच्चाई कहीं कटघरे में डर रही है

अब खून देखकर भी दिल कांपता नहीं है 

दो गज जमीन के लिए तकरार हो रही है 

फैलाते हैं जो जहर यहाँ धर्म जात की 

वो सोंचते हैं जीत है ,पर ये उनकी हार है 

प्रभात कैसे करे सलाम ऐसे अमीरों को 

जिन्होंने चन्द रुपयों की खातिर

बेच डाला है जमीर को 

ऐसे लोग बोझ हैं धरा में सोंचिए 

महसूस न करे जो ज़माने के दर्द को....


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