यह जादू, चलता रहे
यह जादू, चलता रहे
चाहती हूँ, फिर से अपने बच्चों
के लिए परी बन जाऊँ,
उनकी आंखों के आगे
जादू की छड़ी घुमाऊँ,
उनकी टिमटिमाती आंखों में
निश्चिंतता की मुस्कान भर दूँ।
मुझे पता है,
मैं आज भी उनके लिए परी हूँ,
उनको मेरी अदृश्य
जादुई छड़ी पर विश्वास है,
और वे हो जाते हैं निश्चिंत।
लेकिन, बुद्धि !
अचानक प्रश्न उठाती है,
क्या सच मे माँ जादू कर पाएगी !
यह भय दूर रहे,
मेरी माँ सी ईश्वरीय छड़ी,
उनके सारे सपनों को पूरा करे,
खुल जा सिम सिम कहते,
सारे बन्द दरवाज़े खुल जाएं
और उनकी मासूम हँसी से,
मेरे थके मन को स्फूर्ति मिल जाए।
हाँ, यह दोतरफा जादू,
चलता रहे चलता रहे चलता रहे ...।