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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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याद पाषाण - युग की ( 38 )

याद पाषाण - युग की ( 38 )

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कोरोना की इस महामारी में, 

हम सब घरों में कैद हुए ऐसे, 

याद आ रहा वो इतिहास हमे ऐसे, 

जैसे लोग जी रहे थे पाषाण-युग में, 

"मानो आज हमें "भी ऐसा ही लग रहा हैं, 

जैसे हम भी जी रहे हैं पाषाण-युग में, 

न काम-काज ना ही कोई धंधे की फिक्र, 

न स्कूल या कॉलेज जाना,

ना ही ऑफिस जाने की जरूरत,

बस खाना खाना और घर में रहना , 

जिस घर में रहते वो लगता हैं, 

मानो की 

गुफाओं और कंदराओं में दुबके रहना हैं, 

बाजार जाना है........; 

सब्जी या समान लाना हैं तो, 

मानो ऐसा लगता हैं...., 

जंगल में शिकार करने जाना हैं, 

अभी सब कुछ ऐसा ही लगता हैं, 

मानो हम उस पाषाण-युग में जी रहे हैं!!      

 


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