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Dr. Imran Khan

Others

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Dr. Imran Khan

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याद नहीं

याद नहीं

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खुला आसमान देख कर परिंदा हैरत में है

शायद उसे ये नज़ारा याद नहीं


तुम्हें बुलाने के लिए एक इशारा ही काफी था

लेकिन तुम्हें अब वो इशारा याद नहीं


कश्ती डगमगा रही है बीच भंवर में कहीं

रास्ता भूल चुके हैं, किनारा याद नहीं


वो पत्थर नींव बनकर ज़मीन में दफन हो चुका

ऊंची इमारतों को उनका सहारा याद नहीं


दिन रात भी अपनी रफ़्तार से चल रहे हैं इम्रान

किसी को रंजो गम तुम्हारा याद नहीं




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