याद नहीं
याद नहीं
1 min
208
खुला आसमान देख कर परिंदा हैरत में है
शायद उसे ये नज़ारा याद नहीं
तुम्हें बुलाने के लिए एक इशारा ही काफी था
लेकिन तुम्हें अब वो इशारा याद नहीं
कश्ती डगमगा रही है बीच भंवर में कहीं
रास्ता भूल चुके हैं, किनारा याद नहीं
वो पत्थर नींव बनकर ज़मीन में दफन हो चुका
ऊंची इमारतों को उनका सहारा याद नहीं
दिन रात भी अपनी रफ़्तार से चल रहे हैं इम्रान
किसी को रंजो गम तुम्हारा याद नहीं।