वो बचपन खो गया कहीं
वो बचपन खो गया कहीं

1 min

44
वो बचपन खो गया कहीं, वक़्त की रफ्तार में
वो जोर जोर से करना प्रार्थना, खड़े हो कतार में
दिल सहम जाता था गुरूजी की, एक ही फटकार में
ना आता था कोई नाबालिग, हैवान बन अख़बार में
वो बचपन खो गया कहीं, वक़्त की रफ्तार में
ना रुतबे - पैसे का फ़र्क था, सब पिरोए थे एक तार में
अब लाखों दीवारें आ गई है, दोस्ती के संसार में
हासिल इनसे कुछ होगा नहीं, जैसे सारहीन के सार में
वो बचपन खो गया कहीं, वक़्त की रफ्तार में