उल्ज़न
उल्ज़न
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ये उल्ज़न भरी ज़िन्दगी,
हम सुलझाएं कैसे ?
कहना तो बहुत कुछ है,
पर कहे तो कहे किससे ?
न जाने कहा ले जायेंगी ये राहे मुझको
इस ज़िन्दगी के भंवर में,
हम फस गये है कुछ ऐसे,
पता नहीं ये उल्ज़नभरी ज़िन्दगी,
हम सुलझाएं कैसे !
ज़िन्दगी के इस सफर में,
कही धूप है तो कही छाँव,
कही पतझड़ है तो कही बहार भी है,
काली घनी रात के बाद खिलता हुआ सवेरा भी है,
फिर भी न जाने क्यों एक उल्ज़न सी है,
पता नहीँ ये उल्ज़नभरी ज़िन्दगी,
हम सुलझाएं कैसे !
