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Udbhrant Sharma

Others

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Udbhrant Sharma

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तवायफ़-1

तवायफ़-1

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सृष्टि के आदि से ही

कायम है उसकी सत्ता
वह दुनिया के
सबसे पुराने
व्यवसाय में है
उसे फ़क्र है
कि दुनिया के
तमाम मर्दों के लिऐ
और तमाम
सती-साध्वियों के लिऐ भी
जंगल, समाज और सत्ता से स्वीकृत
बेहतर समझे जाते
विकल्प की जननी है वह!
अपनी उपस्थिति से
बचा लेती है
कामोद्दीप्त समाज को
आग में जलकर
राख होने से!
उसकी दो अंगुल जगह में
समूची सृष्टि की पवित्रता,
घंटे, घड़ियाल,
मृदंग और मँजीरे,
मन्दिर और मस्ज़िद
और गिरजाघर,
सम्पूर्ण धार्मिकता,
मज़हबी तहज़ीब,
अपने-अपने
ख़ुदा और ईश्वर
और गुरु और क्राइस्ट!
उस विवेक और आनन्द के
शून्य में
समाया है
समूचा ब्रह्माण्ड
जिसे
जब चाहती है वह
गंगाजल से धोकर
कर देती है
फिर से पवित्र
वह पुण्य कार्य करती है
मगर पापी कहलाती है!
पाषाण युग के
बार्टर सिस्टम को
तन की कसौटी पर कसते
आज के
भूमण्डलीकरण के युग के
एकमात्र महाराजा-
बाज़ार की
एकमात्र महारानी!
ख़रीदने को तत्पर
महाराजा के मुकुट से लेकर
नौकरशाही का जूता तक!

 


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