तुम
तुम
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हाँ तुम ही तो थे
जिसको चाहा था मैंने बड़ी शिद्दत से
बयां नही कर सकती शब्दों में
आज भी व्यतीत समय की यादें
झलकती हैं मेरे शब्द रूप में
रिश्ता बेशक धुंधला गया हो पर
टीसता बहुत हैं वो फरेबी सा विश्वास
उम्मीद जुड़ी थी न जाने क्यों
उम्मीद बन कर दाखिल हुए थे तुम
नाउम्मीदी बन चले गए खुद ही
कसूरवार भी साबित कर जाते तो
राहत मिलती शायद स्वयं को जांचने की
पर विश्वास को शायद आखिरी कर गए तुम
मेरी मुस्कान से गुम होकर चले किस राह
अंतिम विश्ववास बन मेरी रूह में
अंतिम उम्मीद बन मेरे जीवन में
अंतिम स्वास तक टीस बन मेरी देह में।