तारीफ चाहत
तारीफ चाहत
तारीफों की चाहत में अपनें नही छोड़ा करते हैं
सूरज की चाहत में चांद को नही तोड़ा करते हैं
सबकी अपनी-अपनी जगह कद्र हुआ करती हैं
फूलों की चाहत में शूलों को नही छोड़ा करते हैं
ये बुराई करनेवाले शख्स हमे निखारने वाले हैं
घमंड में निंदक,से सुधारक नही छोड़ा करते हैं
वो जैसे हैं,वैसे ही रहेंगे,पर कोहिनूर के लिए,
कोयले के कृष्ण दागों से कभी न डरा करते हैं।
अपने मियां मिठ्ठू बनने के चक्कर मे कभी
बड़े बुजुर्गों का अनुभव नही ठुकराया करते हैं
हीरे की चाहत हैं,एकदिन हीरे ही बनोगे तुम,
हीरे के लिय,तम की वजह नही भूला करते हैं।