स्याही-ताल पर थिरकने वाले कवि
स्याही-ताल पर थिरकने वाले कवि
1 min
265
ए स्याही-ताल पर
थिरकने वाले कवि
लौट आ
कि अभी बाकी है
दवात में स्याही।
ए उजले दिनों के
आकांक्षी कवि
लौट आ
कि अभी जारी है
उजले दिनों की तलाश।
ए 'कटरी की रूकुमिनी' की
कथा लिखने वाले कवि
लौट आ
कि अभी भी गरज रहे हैं
घन-घमंड के
फट रही है नभ की छाती
और कर रहा है
मानव जीवन
चिलबिल-चिलबिल...!