सूरदास ओर उनके कान्हा
सूरदास ओर उनके कान्हा
भारत के एक महान कवि थे सूरदास,
जो की जन्म जात अंधे थे।
रहते थे पीपल के पेड़ के तले,
ओर गाते थे भजन निराले।
थे वे बड़े भक्त श्री कृष्ण कन्हैयालाल के,
एक बार उनके एक गुरु के कहने पर,
वे गाने लगे उनके कान्हा के द्वार, मन्दिर में जाकर ।
दौड़े आते कान्हा उनके मधुर भजन सुनकर,
था इतना प्रेम ओर मधुरीता की बैठे रहते थे
कृष्ण कन्हैया उन्हींके पास मैं आकर।
कहते हैँ लोग कि देते थे उन्हें कन्हैया दर्शन रोज़,
थे बड़े भक्त वे रहते थे भक्ति सागर मैं हर पल डूबकर ।
एक बार सूरदास बोले पुजारी से,
की नहीं अच्छा लगता ये पीला रंग कन्हैया पे।
कुछ ओर पहनाओ भगवान को,
की दिखेंगे ज्यादा सुन्दर हमको।
पुजारी हुए परेशान,
की जिसको दीखता नहीं कुछ भी,
उसने कैसे पहचाना पिले रंग को।
अगले दिन फिर सूरदास बोले,
की हाँ तुमने ध्यान रखा इस बार।
जजता है ये हरा रंग भगवन को हरबार।
पुजारी को नहीं समझ मे आता,
ये कैसी लीला है प्रभु की।
उसने सोचा की कुछ तो है गड़बड़,
परखूंगा मैं इसेभी।
अगले दिन पुजारी ने नहीं पहनाया प्रभु को,
कोई भी वस्त्र ओर ढाका उनको पत्तों से।
सूरदास भजन गाते गाते बोले,
की आज कैसी लीला है देखो प्रभु की,
की आज तुम भी गरीब हो गए हो भगवन,
आए हो सिर्फ पतों मैं ढक कर।
सहि मैं मन की शक्ति से बड़ा नहीं होता,
कुछ भी ओर सब कुछ है मुमकिन इससे जग मैं।
एक बार सूरदास गिरगये तालाब मैं।
पुकारा उन्होंने उनके कान्हा को।
आये कन्हैया एक छोटे से बालक के रूप मैं,
ओर हाथ देकर निकाला उनको तालाब से।
सूरदास ने उनके स्पर्श से जाना की आये हैँ भगवन,
ओर कस के पकड़ लिया उनको उसी पल।
भगवान ने झटक कर छुड़ाया अपना हाथ,
तब बोले सूरदास की कोमल जानकर छुड़ा लेते हो,
हाथ अपना झटक कर।
पर नहीं जा सकोगे तुम मेरे दिल से,
क्योंकि रहते हो तुम इसमें हर पल।
