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Pankaj Priyam

Others

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Pankaj Priyam

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सूखी बरसात

सूखी बरसात

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वर्षा ऋतु बरखा बिना, बिन बादल आकाश।

खेतों में सूखा पड़ा, टूटी सब की आस।।


बदरी बरसे क्यों नहीं, समझा उसका हाल?

कुदरत को सब छेड़कर, किया उसे बेहाल।।


गलती मानव कर रहा, जंगल रोज उजाड़।

पेड़ों का संहार कर, काटता रोज पहाड़।।


पानी का दोहन करता, भेज दिया पाताल।

तरसे पानी बूँद को, सूखी नदिया ताल।।


एसी तो ठंडक करे, मगर बढ़ावे ताप।

दूषित है पानी-हवा, दोषी जिसके आप।।


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