सुबह का भूला
सुबह का भूला
सुबह का भूला शाम लौट घर आता है,
उसको कोई नही हराने पाता है l
वाल्मीकि जो बड़ा लुटेरा था लोगों ,
उसको कम अक्ली ने घेरा था लोगों।
सीख मिली तो बना वही विद्वान बड़ा,
पूजनीय लोगों के संग है आज खड़ा ।।
पथ भूला जब सतपथ को अपनाता है,
उसको कोई नहीं हराने पाता है l
प्रेमासक्त हुए थे तुलसी याद करो ,
इतिहासों के पन्नों से होकर गुजरो।।
बने ज्ञान के झरने कैसे बहते हैं ,
महाकवि वो बने दिलों में रहते हैं ।।
ठोकर खाकर के कोई उठ जाता है,
उसको कोई नही हराने पाता है।
एक नहीं अनगिन ऐसे हैं लोग यहां ,
पथ में उनके घटे कई संजोग यहां ।
हुई विरक्ति उन्हें देखते थे जो ख्वाब,
बने पारसा वही जिन्हें पी गई शराब।
"अनन्त"तट खुद जिनको गले लगाता है ,
उनको कोई नही हराने पाता है l
