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Rashi Saxena

Abstract

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Rashi Saxena

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सपनों की कैद

सपनों की कैद

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विदेशी अम्बर से देसी पिंजरा प्यारा

उड़ते हुए विशाल आकाश में 

जब भी तन थका मन हारा

कौन अपना जिसका लूँ मैं सहारा 


अंग्रेजी सभ्यता जीवनशैली अत्याधुनिक 

पड़ोसी की रखते खबर नहीं तनिक

मुसीबत हादसे में कर लेते किनारा 


आपा धापी रोज़ की दौड़ में 

न कोई बुज़ुर्ग साथ न वक़्त किसी के पास

रुके मिले या पूछ ले हाल तुम्हारा 


सपनों की कैद में भाग रहे सब 

नहीं है इससे कोई रिहाई 

हर छुट्टी होते आयोजन लगते हैं मेले

 

पर कौन मिले अपना पराये देस में 

अकेलापन वीरानी तन्हाई रहती बस 

जब दूर तक किसी को ढूंढा निहारा। 


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