सपनों का वो द्वीप
सपनों का वो द्वीप
सपनों का वो द्वीप
हमारे सपनों का वो द्वीप,
सागर के थपेड़ों के बीच,
स्वप्न जिसे रहे थे सींच,
भरे थे जिसमें मोती और सीप,
जलते थे जिस पर असंख्य दीप,
बजते रहते प्यार भरे मधुर से गीत।
वह पथरीला,हरा भरा सा टापू,
फैला जिसमें हरे काई का जादू,
कहीं मटमैली फिसलन,
कहीं गुलाबी जकड़न,
कहीं बदनों को सहलाती हवा,
कहीं दो धड़कते दिल,जवाँ,
जैसे तुम्हारे अधरों से गीत निकलते
और चारों ओर गूँजते,
वहीं कहीं हरी सी काई रेंगती,
अपनी ही गंध में कौंधती,
मखमली कालीन सी लिपटी
उन सुंदर गुफाओं से, चिपटी
हुई, मानों जान हो उनकी,
निर्जीव पहाड़ी दीवारों में जान फूँकती।
वहीं एक नन्हे से दरार में,
हवा के बयार में,
वह रंगीन सा फूल जो डोल रहा था,
हमारी ख़ुशियों में मस्त, इतरा रहा था,
जादुई उसकी बोली थी,
कुछ मूक शब्दों की टोली थी,
जो तुम्हारा नाम ले पुकारती,
फिरकी सी आती लहर जब बूँदों से उसे सँवारती,
हर पेड़, हर दरख़्त हमें पहचानते,
हर पंछी,हर प्राणी वहाँ,हमें अपना जानते,
हर लता तुम्हारे हाथों को जाती थी चूम,
हर तरू साथ जताता झूम-झूम,
उस ऊँचे से पथरीली गुफ़ा में,
नाज़ुक से दिल, हमारे ही बसते थे।
वह पथरीली,ऊँची सी दीवार,
मानों बंद करती हुई सारे द्वार,
बस एक मैंं और एक तुम,
सिर्फ़ दो हम,
पूरी दुनिया से हटे हुऐ,
हर जाने-अंजाने से कटे हुऐ,
बस एक दूसरे में सिमटे,
दो दिल एक दूजे की आगोश में लिपटे,
तुम गीत मेरे सुनती,
मुझे अपने संगीत लहर में बहाती,
अंदर तक भिगो जाती,
उस पगली लहर सी जो पत्थर के सीने से टकराती,
टकराकर उसे नहला जाती,
अपनी शीतलता दे जाती।
मेरे गीत गाते मेरे प्यार का अफ़साना,
तेरे बारे मे चाहते हर एक को बताना,
चारों दिशाओं में फैला था बस प्यार,
इंद्रधनुषी सा ग़ुबार,
जिसमें सिमट कर रह गईं थी लहरें,
धरती, अम्बर, समय के काफ़िले,
समुन्दर,वह टापू और सारे फूल,
काई,सैलाब,रेतीली धूल,
वह अधखुला सा बीज,
धरती की छाती के बीच
जो अपने अधर धर रहा था,
आसमान पर जो रूपहला बादल विचर रहा था,
सब हमारे प्यार की कहानी सुनाते थे,
हर पल हमें गुनगुनाते थे।
हर हवा हमें पहचानती थी,
हर ऋतु हमें अपना मानती थीं,
रेशमी फूलों ने हमें सँवारा था,
तारों ने चमचमाता चादर ऊपर बिछाया था,
यहीं कहीं हमारा प्यार था पनपा,
हर क्षण के साथ था बढ़ता,
हमारा प्रेम बिखरा था रातों में,
सूरज के किरणों में,शर्मीली शामों में,
हवा भी कभी तुम्हारा,कभी मेरा नाम पुकारती,
लहरें भी हमें अठखेलियों को बुलाती,
फूल,फल, मिट्टी, पेड़,
शाखा, पत्ते,कली और जड़,
सब थे हमारे प्यार के साक्ष्य,
यहीं था हमारा छोटा सा साम्राज्य।
तुम्हारा नाम ले लेकर मेरे लब,
लेते तुम्हारे सुर्ख़ अधरों का चुम्बन जब,
तब समाँ भी सुर्ख़ हो जाता था,
वह सुर्ख़ गुलाब भी शरमा जाता,
जिसकी हर पंखुड़ी पर नाम तेरा लिखा था मैने,
जिस तरह हर गुफा की दीवार पर मेरा नाम लिखा था तुमने,
साथ-साथ हम चलते चले,
एक दूजे संग बढ़ते रहे,
ना कोई भेद,ना छुपा कोई राज़,
ज़िन्दगी के बोलों पर बजाते प्यार का साज़,
तुम मुझमें, मैंं तुम मे शामिल,
दोनोंं बस मुहब्बत के कायल,
दो दिल और जान एक हो चुके,
दोनों ही एक दूसरे के दिल में छुपे ।
हमारे सपनों का वो द्वीप,
सागर के थपेड़ों के बीच,
स्वप्न जिसे रहे थे सींच,
भरे थे जिसमें मोती और सीप,
जलते थे जिस पर असंख्य दीप,
बजते रहते प्यार भरे मधुर से गीत।
©मधुमिता