माँ
माँ
आँकी बाँकी लकीरों में छुपी
समय की अनगिनत लुका छुपी
सी,दिखती, तुम्हारी खुरदरी,मैली
सी ,कमज़ोर, रूख़ी सी हथेली
में, छुपी कई सौ पहेली l
कोई छाला मेहनतकशी का,
कोई जला घाव गरम तवे का,
कुछ यादें तुम्हारी चपत की,
हाथों में हाथ लेकर सलाह मुफ़्त की,
क्या-क्या राज़ छुपाऐ हुऐ हैं तुम्हारी हथेली भी l
वो प्यार से कौर तोड़ हमें खिलाना,
बुख़ार में तपते माथे पे, रात भर ठंडी पट्टी रखना,
परीक्षा के समय उँगली में पेन्सिल पकड़ मुझे यूँ पढ़ाना,
मानो, तुमको ही सारी परीक्षाऐं थीं पास करना,
आज मेरा मान-सम्मान सब तुम्हारी हथेली से ही तो है बना l
वो मीठी सी चाय तुम्हारे हाथों की,
वो खतरे की घंटी तुम्हारे हाथों की,
वो प्यार से सहलाना तुम्हारी हथेली का,
खींच-खींच कर मेरी चुटिया भी बनाना तुम्हारी हथेली का
काम, क्या मज़बूत थीं तुम्हारी हथेलियाँ l
क्या-क्या रचा बसा है तुम्हारी हथेलियों में,
ऐ मेरी माँ, कितने ही फ़साने बसे हैं तुम्हारी हथेलियों में!
बनीं रहें मेरे सिर पे ,ये हथेलियाँ तुम्हारी हमेशा,
इनके साथ और दुआओं की दरकार मुझे रहेगी सदा-सदा, हमेशा हमेशा ll
-मधुमिता