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Akhtar Ali Shah

Others

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Akhtar Ali Shah

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सफर फोन का

सफर फोन का

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टेलीफोन से मोबाईल,

मोबाईल से स्मार्टफोन।

चलते चलते कहां आ गया,

ये प्यारा मतवाला फोन।।

कदम विजयरथ ले जो बढ़ते,

कौन रोकने उनको पाया ।

संगीनों के साए में है,

तूने होश संभाला फोन ।।


कैलेंडर से दूर कर दिया,

छूट गई हाथों की घड़ियाँ।

केलकुलेटर आज बना है,

तम में है उजियाला फोन।।

यही दूरदर्शन बन करता,

लोगों दिलजोई घर घर में।

फिल्म दिखाता गीत सुनाता,

सबसे निपट निराला फोन।।


नेट समेटा इसमें जब से,

बना ज्ञान का सागर गहरा।

हर सवाल का जवाब है ये,

सबका देखा भाला फोन ।।

आज बैंकिंग भी ये करता,

जमा निकासी धन की करता ।

देखो कितना चतुर सयाना,

व्यापारी मतवाला फोन ।।

विद्यार्थी हो शोधार्थी हो,

या हो अभिभाषक सबकी।

ग्रंथालय बन भूख मिटाता,

बनकर ज्ञाननिवाला फोन ।।    


घर बैठे शापिंग करवाता,

तरह तरह के बिल भरवाता।

वक्त बचाता जादूगर ये,

है हाथों का छाला फोन ।।

ये पहरे पर खड़ा सिपाही,

जब चाहे रक्षा करवा लो।

सामाजिक संपर्क बनाकर,

रखता है दिलवाला फोन ।।


नहीं रही अब कहीं दूरियाँ,

जब जितना चाहो बतियाओ।

रहो सामने इक दूजे के,

कैसा है रखवाला फोन ।।

पर ये भी सच है कि हम ही,

दुरुपयोग इसका करते हैं ।

फाॅस रहा है हमें जाल में,

बना आज मधुबाला फोन।।

"अनन्त" दिखता है जो सीधा,

लिए नग्नता अपने में है ।

नई पीढ़ी बर्बाद कर रहा,

बना विष भर प्याला फोन ।।



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