सोन चिरैया:
सोन चिरैया:
1 min
150
मेरी सोन चिरईया को शिकायत है यह रहती।
क्यों मोहे छोड़ अकेला तू रोज़ फुर्र हो जाती।।
उसका कहना की तकिये से आती आपकी खुशबू।
मोहे कराती है एहसास की मैं हूँ आपके रूबरू।।
जब याद उसे है मेरी सताती।
तकिये को लगा सीने से मीठे ख्वाबों में सो जाती।।
मैं उससे कह पाती काश।
की आराम छोड़ कर जाती हूँ करने आराम की तलाश।।
सख़्त हू यह मेरा स्वाभाव नहीं मजबूरी है।
कि तुम स्वछंद हो आसमां को मुट्ठी में भरो।
यह ख्वाईश तुम्हे करनी पूरी हैं।।
आँख बंद करने पर बस तुम ही देती हो दिखाई।
मैं तेरा अक्स हूँ तू है मेरी परछाई है।