संवेदना
संवेदना
मानवीय सदमूल्यों का ह्रास, बढ़ गया आज इस कदर।
स्व की अवधारणा की भागमभाग, और कहीं नहीं नजर।।
सुसंस्कार विलुप्त हुए, नैतिकता का कराह रही।
स्वार्थों के शोर में नहीं अब, सेवा भावना की राह रही।।
अब कहाँ वो सौम्यता, शिष्टता, सदाचार सद् प्रवृत्तियाँ।
सिर्फ शेष विषाक्त मलिन, कलुषित दुष्प्रवृत्तियाँ।।
परमार्थ परायण दूर रहा, अपने बुजुर्गों का क्या सत्कार किया।
अशक्त वृद्धावस्था के दौर में, अपनों ने ही दुत्कार दिया ।।
जिन्होंने पाला - पोसा, क्या उनके प्रति यही है कर्तव्यनिष्ठा ?
क्या नहीं है ये भौतिकवादी व भोगवादी सोच की पराकाष्ठा?
सभी को झेलनी पड़ती है अनिवार्यत:
ये पीड़ा, पीर और वेदना।
अशक्त, अक्षम वृद्धावस्था के प्रति,
जगानी होगी हमें संवेदना।
बड़े बुजुर्गों की सेवा ही, सच्चे जीवन मूल्यों का अर्थ है।
उनको अपमानित व दुखी करने वाले का जीवन व्यर्थ है।।